ADRENALINUM Homeopathic Medicine Treatment and Side Effects In Hindi

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एड्रीनैलिन (Adrenalin)

(An Internal Secretion of Suprarenal Glands)

मूत्रपिण्डोपरि ग्रन्थि के गुद्दीवाले भाग का तात्विक पदार्थ अथवा एड्रीनैलिन या एपिनेफ्रिन (बाहरी भाग का स्राव अभी अलग नहीं किया गया है), शारीरिक क्रिया ठीक करने के लिए रासायनिक हरकारे की तरह काम में लाया जाता है । वास्तव में स्नैहिक नाड़ीमण्डल की क्रिया के लिए इसकी उपस्थिति आवश्यक है । शरीर के किसी भाग पर एड्रीनैलिन की क्रिया का यही मतलब है कि वह स्नायुजाल के सिरों को उत्तेजित करती है । 1:1000 घोल का श्लैष्मिक झिल्ली पर ऊपरी व्यवहार करने से तुरन्त रक्त-स्वल्पता हो जाती है जो उस भाग की अस्थिर खाल की उधड़न और रक्तहीनता से सिद्ध है । इस दवा को आँखों की पुतलियों पर बूंद-बूंद टपकाने से कुछ घण्टों के लिए सफेद पर्दा पीला हो जाता है । इसका प्रभाव तात्कालिक है परन्तु स्वयमेव ही मिट जाता है । कारण यह है कि ऑक्सीजन की क्रिया वहाँ बहुत फुर्ती से होती है । यदि बार-बार न डाली जाये तो यह कोई हानि नहीं करती । परीक्षणों में इस औषधि ने पशुओं में मेदमय अर्बुद और हृदयावरण संबन्धी रोग उत्पन्न किये हैं । इस दवा का विशेष प्रभाव धमनियों, हृदय, वृक्क-शिखर और रक्तवाहिनी नाड़ियों में तनाव और फैलाव लाने वाले स्नायुजाल पर है ।

एड्रीनैलिन का मुख्य कार्य क्षेत्र स्नायुमंडल के छोर हैं, जिससे धमनी के सिरों में संकुचन होता है और परिणामस्वरूप रक्तचाप बढ़ जाता है । यह प्रभाव विशेषकर पेट और आँतों में देखा गया है, गर्भाशय और चर्म में कुछ कम तथा मस्तिष्क व फुफ्फुस में पूर्णतः नहीं । इसके अतिरिक्त यह नाड़ी को शिथिल बनाती है । दिल की चाल को बल देती है । दिल के पट्टों में सिकुड़ाव अधिक लाती है और आमाशय, आँतों तथा मूत्राशय के पट्ठों को ढीला करती है ।

उपयोग — इसका औषधि के रूप में मुख्य उपयोग इसके रक्तवाहिनियों में संकीणता लाने के गुण पर निर्भर है, अतः यह अति बलवान और तात्कालिक संकोचक तथा रक्तस्राव रोधक है, और शरीर के किसी भाग की क्षुद्र रक्तनलिकाओं के रक्तस्राव को रोकने में अत्यन्त लाभदायक है, जहाँ कि बाहरी प्रयोग सम्भव है-जैसे नाक, कान, मुँह, गला स्वरनली, पेट, गुदा, गर्भाशय, मूत्राशय । ऐसे सभी रक्तस्राव में हितकर है जो दोषमुक्त रक्त जमने के कारण न उत्पन्न हुए हों तथा पूर्ण रक्तस्वल्पता में । ऊपरी प्रयोग 1:10000 तथा 1:1000 का सोल्यूशन छिड़कना या रुई तर करके आँख, नाक, गला, स्वरनली बिना खून बहाये ऑपरेशन के लिए प्रयोग किया जाता है ।

छलनी की तरह छेद वाले और जातुकारक नासूरों की रक्ताधिक्य अवस्था में और मौसमी इल्फ्लुएन्जा ज्वर में कुनकुना एड्रीनैलिन क्लोरायड सोल्यूशन 1:5000 के छिड़काव से लाभ होते देखा गया है । यहाँ पर हीपर 1x की भी तुलना कीजिए जिसमें मवाद उत्पन्न होकर बहना शुरू हो जाता है । त्वचा पर बैंगनी रंग के दाग पड़ने में 1:1000 शक्ति का इन्जेक्शन दिया जाता है । बाहरी प्रयोग में यह दवा स्नायु-प्रदाह, स्नायु — शूल, परिवर्तित दर्द, गठिया, वातरोग में मलहम के रूप में, 1-2 बूंद (1:1000) के सोल्यूशन स्नायुभाग के आरम्भिक छोर से चर्म के पास जहाँ तक पहुँच सके, मलना चाहिए (एच. जी. कार्लटन) ।

औषधि के रूप में एड्रीनैलिन का प्रयोग तीव्र फुफ्फुस प्रदाह, दमा, गिल्हड़ जिसमें आँखें बाहर निकल आई हों, ओजोमेह (एडीसन द्वारा उल्लिखित वृक्क रोग), धमनी का कड़ापन, जीर्ण वृहत् धमनी प्रदाह, अप्राकृतिक रक्तस्राव की प्रवृत्ति, मौसमी इन्फ्लुएन्जा, दाने, तीव्र जुलपिती इत्यादि रोगों में किया गया है । डॉक्टर पी. जूसेट की रिपोर्ट है कि होमयोपैथिक प्रणाली से तीव्र अथवा जीर्ण घुटन की अनुभूति और वृहत्धमनी प्रदाह में लाभ हुआ है, जबकि एड्रीनैलिन लघु मात्रा में खिलाया गया । वक्षस्थलीय संकुचन और बेचैनी इस दवा के प्रयोग का मुख्य लक्षण था । इस दवा से चक्कर, मिचली और कै पैदा हो जाती है ।

आमाशय दर्द — प्रबल आघात या दवा से आई बेहोशी की हालत में हृदयगति रुकने का खतरा हो जाता है, क्योंकि इससे रक्तनलिकाओं के प्रभावित होने से रक्तचाप तेजी से बढ़ता है ।

मात्रा — होमियोपैथिक रीति से 1-5 बूँद (1:1000 शक्ति का घोल, क्लोराइड के रूप में) पानी में मिलाकर दें । आन्तरिक व्यवहार के लिए 5-30 बूंद 1:1000 शक्ति के घोल का ।

सावधानी — ओषजन आकर्षण प्रवृत्ति के कारण इस दवा के तत्व पानी में मिला घोल और हल्के तेजाबी घोल आसानी से छिन्न हो जाते हैं, इसलिए इसके घोल को रोशनी और हवा से बचाना चाहिए । इसकी घड़ी-घड़ी दोहराना नहीं चाहिए क्योंकि इसका असर दिल और धमनी के लिए हानिकारक है ।

होमियोपैथिक प्रयोग के लिए 2x-6x की शक्ति में ।

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