गात्र दाह का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Burning Limb ]

602

शरीर में दाह या जलने साधारणतः ज्वर आदि रोगों को लक्षण भर है। किसी रोग में गात्र-दाह उपस्थित रहने पर निम्न औषधियां लाभ करती हैं

सल्फर 30, 200 — हाथ, पैर, मुंह, नाक, जिह्वा और आंख आदि में मानो अग्नि जल रही हो और शरीर दग्ध हो रहा हो; कोई भी रोग जीर्ण-अवस्था में होने पर ऐसे दाह का अनुभव हो, तो यह औषधि बहुत लाभ करती है।

आर्सेनिक 30 — किसी भी तरुण रोग में समूचे शरीर में जलन और दाह होने की यह प्रधान औषधि है। इस जलन (दाह) का एक प्रधान लक्षण यह भी है कि शरीर में चाहे कैसी भी जलन हो, पर रोगी कपड़े नहीं उतारना चाहता है। वह अग्नि के समक्ष अथवा धूप में बैठना चाहता है। घाव, फोड़ा या ज्वर आदि में जब रोगी एकदम सुस्त हो जाता है, तब इसी प्रकार की जलन का अनुभव होता है। इसमें यह औषधि उपयोगी है।

सिकेलि 3x — अग्नि की लपटों से मानो समस्त शरीर जला जाता है, रोगी को ऐसा मालूम होता है (किंतु जब कोई दूसरा व्यक्ति उसके शरीर पर हाथ रखता है, तो वह उसे ठंडा प्रतीत होता है, इतने पर भी रोगी कपड़े नहीं उतारना चाहता) और सदैव पंखा झलने या पंखा तेज करने के लिए कहता है। हैजा और सड़न वाले रोग में यह लक्षण दिखाई देते हैं।

फास्फोरस 6 — सल्फर के लक्षण की तरह शरीर में जलन (विशेषकर तपेदिक के रोग में) होना।

एकोनाइट 1x — तरुण प्रदाहिक ज्वर ही प्रथमावस्था में जब बेचैनी अधिक मालूम हो।

एपिस मेल 200 — डंक मारने की तरह के दर्द के साथ किसी अंग या प्रत्यंग में जलन और उसके साथ ही लाली और सूजन मौजूद रहने पर यह औषधि प्रयोग करें।

ऐगारिकस 30 — शरीर के विभिन्न अंगों में खुजली और लाली के साथ, दाह और जलन।।

बेलाडोना 30 — समूचे शरीर में दाह के साथ किसी अंग में प्रदाह (सूजन, लाली); प्रदाह वाली जगह छूने पर ऐसा महसूस होता है, मानो वहां से आग निकल रही है।

कैन्थरिस 6 — गला, पेट, गुह्यद्वार और मूत्र-यंत्र में जलन, विशेषकर मूत्र-त्याग करते समय।

कैप्सिकम 3, 6 — शरीर में तीव्र जलन मानों किसी ने समूचे शरीर पर मिर्ची मल दी हों।

ब्रायोनिया 30 — पित्त-प्रधान व्यक्ति के हाथ-पैर आदि में जलन मालूम होना।

Comments are closed.