मोतियाबिंद का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Cataracts ]

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वृद्धावस्था के कारण आंख की पुतली पर एक तरह का पर्दा-सा पड़ जाता है, इससे धीरे-धीरे नजर कमजोर हो जाती है और फिर बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता। वस्तुतः आंख की पुतली एक प्रकार का लैंस है, जिसमें से बाहर की वस्तुओं की शक्ल गुजरकर आंख के भीतरी चित्रपट (रटिना) पर पड़ती है और तब हम देख पाते हैं। आंख का वह लैंस जब तक पारदर्शक रहता है, तब तक हमें सब चीजें स्पष्ट दिखाई देती हैं, किंतु आयु वृद्धि के साथ यह पारदर्शक लैंस धीरे-धीरे अपारदर्शक होने लगता है।

इस लैंस के अपारदर्शक हो जाने से धुंधला दिखने लगता है; यह बिल्कुल अपारदर्शक हो जाए, तो कुछ भी दिखलाई नहीं देता, इसी को मोतियाबिन्द (कैटेरेक्ट) कहते हैं। इसको बड़ी सहजता से ऑपरेशन द्वारा निकाल दिया जाता है और आंख में कृत्रिम लैंस डाल दिया जाता है अथवा इसी नंबर का लैंस ऐनक में लगा दिया जाता है, जिससे स्पष्ट दिखाई लगता है। होम्योपैथिक औषधियां मोतियाबिन्द को पकने से रोकने में सहायता करती हैं। डॉ० बर्नेट के कथनानुसार व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट होने के कारण ऐसा होता है। यह केवल आंख का रोग नहीं है, साधारण स्वास्थ्य के गिरने का परिणाम है।

मोतियाबिन्द के अनेक कारणों में से गठिया, वात-व्याधि और सिफिलिस आदि कुछ कारण हैं, जिनमें सुधार हो जाए, तो इस रोग में भी सुधार हो जाता है। अधिक नमक खाना, अधिक मीठा खाना अथवा कठोर जल का पीना भी इसकी उत्पत्ति के कारण हो सकते हैं। अधिक नमक खाने से अंग शुष्क हो जाता है। आंख के लैंस पर भी अधिक नमक खाने का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, इससे लैंस सूख जाता है, कठोर हो जाता है, इसी से मोतियाबिन्द हो जाता है। इसी प्रकार अधिक मीठा खाने से शुगर (डायबिटीज) हो जाती है और डायबिटीज के रोगियों को प्रायः मोतियाबिन्द हो जाता है।

कठोर जल में चूना मिला होता है और प्रायः देखा गया है कि जो लोग पहाड़ों में रहते हैं, झरनों का चूना मिले जल को पीते हैं, उन्हें मोतियाबिन्द की शिकायत बहुत ज्यादा होती है। मोतियाबिन्द से बचाव के निमित्त नमक तथा मीठा कम खाना चाहिए और जहां मीठा जल नहीं मिलता, वहां फलों आदि के रस का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए।

कैल्केरिया कार्य 30, 200 — यह मोतियाबिन्द को आसानी से पकने नहीं देती है। जिन लोगों के ग्लैंड्स बढ़े हुए हों अथवा जिनमें यक्ष्मा के लक्षण हों, उनके लिए तो यह बहुत ही उपयोगी है। यदि इसके बाद आवश्यकता पड़े तो फॉस देनी चाहिए।

कोलचिकम 1, 3 — जब कच्चा मोतिया हो, तो इस औषधि से लाभ पहुंचता है।

जिंकम सल्फ 3x — इस औषधि की एक मात्रा से कॉर्निया का अपारदर्शकपन तथा कैटेरेक्ट ठीक हो जाते हैं। कमजोर और वृद्ध लोगों के मोतियाबिन्द में यह बहुत उपयोगी है।

एगरिकस 12 — इस औषधि के प्रयोग से कभी-कभी ऑपरेशन कराने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। बहुत लाभदायक औषधि है।

सिनेरिया सक्कस (मूल-अर्क) — बहुत से होम्योपैथ चिकित्सकों का मत है कि इस औषधि की 2 बूंद दिन में 4-5 बार लगातार 5-6 महीने तक डालते रहने से मोतिया या तो नहीं होता और होता है, तो कट (घुल) जाता है। अधिकतर नेत्र-चिकित्सक इसी औषधि का प्रयोग करते हैं; अत्यंत प्रभावकारी औषधि है।

साइलीशिया 6 — मोतियाबिन्द को दूर करने की यह एक सफल औषधि है। यदि रोगी के पांवों में अधिक पसीना आता हो और वह किसी कारण रोक दियः गयी हो, जिस कारण यह रोग हो गया हो, तब यह अधिक लाभ करती है। वैसे यह रूटीन के तौर पर दी जाने वाली औषधि नहीं है; दी जाने वाली औषधि के रोगी में इसके लक्षण होने चाहिए।

सल्फर 200 — उक्त औषधियों के बीच-बीच में इसे देने से लाभ होता है। मोतिया को दूर करने में इसे महारथ हासिल है। यदि त्वचा-संबंधी किसी रोग के भिन्न-भिन्न मरहमों तथा लोशनों से दबा दिए जाने के बाद इस रोग के होने के लक्षण पाए जाएं, तो इस औषधि से लाभ होता है। इससे मोतियाबिन्द मिट जाता है।

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