बवासीर (अर्शरोग) का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Hemorrohoids (Piles) ]

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यकृत के भीतर और यकृत-धमनी आदि में रक्त की अधिकता होकर अर्श या बवासीर हो जाती है, इसलिए यकृत का दोष ही इस रोग का मुख्य कारण है। इस रोग में गुदा की शिराएं फूलती और बढ़ जाती हैं। ये शिराएं “बलि” या “मस्सा” कहलाती हैं। यह बलि मलद्वार के बाहर रहे, तो “बहिबीले” और भीतर की ओर रहे, तो “अंतर्बलि” कहलाती है। जब यह बलियां या मस्से फट जाते हैं, तो इनसे रक्त बहने लगता है। अंदर की बवासीर से रक्त निकलता है, इसलिए इसे “खूनी-बवासीर” कहते हैं, जबकि बाहर की बवासीर के मस्से दर्द करते हैं, किंतु उनसे रक्त नहीं निकलता है, इसलिए यह “बादी बवासीर” कहलाती है। इस बवासीर में मलद्वार में खुजली मचती है, सुरसुरी होती है, कभी-कभी प्रदाह और पीड़ा होती है। रोगी को बैठने और चलने-फिरने में बहुत कष्ट होता है।

खूनी बवासीर में खून (रक्त) गिरता है, रक्त की पिचकारी-सी चलती है। उत्तेजक-पदार्थ खाना या पीना, अधिक मदिरा का सेवन करना, रात में जागना, घी और मसालेदार चीजें खाना या बिना परिश्रम के दिन काटना, पेट में वायु का अधिक जमा होना, गर्भावस्था में कसकर कमर बांधना या कसे कपड़े पहनना, कब्ज रहना, यकृत-रोग होना, मल-मूत्र के समय कांखना; ठंडे पत्थर, भीगी घास या ज्यादा मुलायम गद्दी पर बराबर बैठे रहना आदि कारणों से यह रोग हो जाता है।

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