चोट का निसान का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Injuries Scar ]

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चोट या घाव हो जाने पर निम्न औषधियों का प्रयोग करें

लीडम 3, 30 — फांस, कील अथवा सुंआ आदि से छिदकर स्नायु में पीड़ा होती है, तब यह औषधि उपयोगी है। ततैया और चूहे आदि के काटने में भी यह औषधि एंटी-टेंटैनस के इंजेक्शन का काम करती है। यदि स्नायु में पीड़ा हो, तो लीडम और स्नायु-मार्ग पर तेज दर्द हो, तो हाइपेरिकम का प्रयोग करना चाहिए।

हाइपेरिकम (मूल-अर्क) 3 — जो कार्य मांसपेशिओं के कुचले जाने पर आर्निका करती है, वही कार्य स्नायुओं के कुचले जाने पर हाइपेरिकम करती है। सूई, पिन, फांस आदि चुभने पर एवं कीट के दंत-क्षत से स्नायु को आघात पहुंचने तथा उसमें दर्द एवं पीड़ा में यह दी जाती है।

आर्निका 3, 30 — चोट या घाव हो जाने से दर्द, मांस-पेशियों में कुचले जाने की-सी पीड़ा; इस औषधि को देने से पीड़ा शांत और दर्द दूर हो जाता है। गठिया, वात-रोग, चोट और घाव आदि में भी यह औषधि अच्छा काम करती है।

रस-टॉक्स 30 — शरीर की हरेक मांस-पेशी में कुलहन का-सा दर्द, जो चलने-फिरने पर बढ़ जाता है। शरीर पर खरोंच, चोट अथवा त्वचा के छिल जाने पर होने वाली पीड़ा में यह औषधि बहुत उपयोगी है। शरीर में कहीं भी दर्द और पीड़ा हो, इससे दूर हो जाती है।

कैलेण्डुला (मूल-अर्क) 3x, 6x, 30, 200 — दूषित घाव, चोट, साधारण घाव, घाव का सड़ना आदि इस औषधि के प्रयोग से रुक जाता है। साधारणतः। भाग मूल-अर्क को 7 भाग ऑलिव-ऑयल में मिलाकर इसे रोग-ग्रस्त स्थान पर लगाना चाहिए। यह प्रयोग एंटीसेप्टिक के तौर पर किया जाता है।

रूटा 6 — शरीर की त्वचा पर चोट जो हड्डी तक जा पहुंचे, तब इससे लाभ होता है। इस चोट के कारण शरीर का वह अंग किसी स्पर्श को सहन नहीं कर पाता है। मिचकोड़ में यह औषधि बहुत उपयोगी है। हॉकी के खिलाड़ियों के पैरों में लगी चोट भी इससे अच्छी हो जाती है।

स्टैफिसैग्रियां 30 — चोट अथवा ऑपरेशन के बाद न भरने वाले घावों को यह ठीक करती है।

सिम्फाइटम (मूल-अर्क) 200 — चोट, मोच, खरोंच, त्वचा का छिल अथवा कट जाना, हड्डी का दुखना आदि विपदाओं में यह औषधि अपना सर्वश्रेष्ठ प्रभाव डालती है। इसका मदर-टिंक्चर का सेवन करने और लगाने दोनों में काम आता है। इसकी 10 बूंद 1 औंस पानी में मिलाकर लोशन तैयार कर लेना चाहिए। यह लोशन लगाने के काम आता है।

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