यकृत (जिगर) के रोग का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Liver Troubles ]

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यकृत के विविध रोग निम्न हैं, जिनमें से कुछ के बारे में पीछे बता आएं हैं। और शेष का वर्णन यहां कर रहे हैं

यकृत में दर्द (Liver Pain)

बैप्टीशिया 12 — यकृत-प्रदेश में दुखन रहती है; पित्तकोष का स्थान दुखता है, इस दुखन के साथ रोगी को दस्त भी आ जाते हैं। इसमें यह औषधि उपयोगी है।

चेलिडोनियम (मूल-अर्क) 6 — यह मुख्य रूप से यकृत की औषधि है। इसका मुख्य लक्षण दाएं अस्थि-फलक के नीचे लगातार दर्द का बना रहना। रोगी सुस्त रहता है, काम में जी बिल्कुल नहीं लगता; यकृत की जगह हल्का-हल्का दर्द बना रहता है, मले नरम, गाढ़ा, पीला या सफेद होता है। यकृत के सब रोगों के लिए यह उपयोगी औषधि है।

डायोस्कोरिया 3 — पित्तकोष से दर्द उठकर छाती, पीठ और हाथों की तरफ जाता है। इसी प्रकार यकृत से तेज दर्द उठकर दाएं स्तन तक जाता है। अनेक प्रकार के दर्दो में यह औषधि उपयोगी है।

यकृत (जिगर) बढ़ जाना (Enlarged Liver, Hepatomegaly)

आर्सेनिक एल्बम 30 — यदि यकृत तथा प्लीहा के बढ़ जाने के साथ-साथ बेचैनी बहुत अधिक हो, इनमें दर्द हो; इसके प्रकृतिगत लक्षण हैं-बेहद कमजोरी, बेचैनी, रात में कष्ट का बढ़ जाना, तनिक से परिश्रम से ही पस्त पड़ जाना, बेहद प्यास, चूंट-घूट पानी पीना आदि।

ब्रायोनिया 30 — यकृत में सूजन के साथ उसका बढ़ जाना, दुख़न होना, चुभन होना, श्वास के लेने और छोड़ने में, खांसने में एवं छूने से यकृत-प्रदेश में बहुत दर्द हो, तब उपयोगी है।

चियोनैनथस (मूल-अर्क) — नाभि-प्रदेश में दर्द रहता है, खींच पड़ती है। ऐंठन होती है; ऐसा लगता है कि आंतों को किसी रस्सी से बांधा और बांधकर फिर यह बांध धीरे-धीरे छोड़ा जा रहा है। यह यकृत के बढ़ जाने पर विशेष उपयोगी औषधि है।

सिड्रोन 3 — मलेरिया ज्वर पर इसकी विशेष प्रभाव है। यदि मलेरिया के कारण यकृत या तिल्ली बढ़ जाए, रक्तहीनता हो जाए या मलेरिया ही के कारण शोथ हो, तब लाभप्रद है। कष्ट का नियत समय पर आना इसको विशेष लक्षण है।

चायना 30 — पेट में वायु भरी रहती है, यकृत-प्रदेश में दर्द होता है। यकृत तथा तिल्ली सूज कर बढ़ जाने में उपयोगी है।

कैल्केरिया आर्स 3x — बच्चों के यकृत या तिल्ली के बढ़ जाने के साथ-साथ बेचैनी बहुत अधिक हो और इनमें दर्द हो; बेहद कमजोरी, बेचैनी, रात को कष्ट का बढ़ जाना, तनिक से परिश्रम से ही पस्त हो जाना, बेहद प्यास आदि लक्षणों में अधिक उपयोगी है।

यकृत में रक्त संचय

नक्सवोमिका 6, 30 — अधिक पेट भर लेने या अत्यधिक शराब पीने की आदत से अथवा आलस्य का जीवन बिताने से यदि यकृत में रक्त-संचय की शिकायत हो, तो यह उपयोगी है।

फास्फोरस 30 — यकृत में रक्त-संचय में उपयोगी है।

ब्रायोनिया 30 — अधिक खाने वाले लोगों के यकृत में रक्त-संचय के साथ यदि पेट में भारीपन हो और जी मिचलाता रहे, तेज सिरदर्द हो, तब यह औषधि लाभ करती है।

यकृत (जिगर) का कड़ा पड़ जाना (Cirrhosis of the Liver)

कारडुअस मेरीएनस (मूल-अर्क) 6 — यकृत के कड़ा पड़ जाने के साथ-साथ शरीर में पानी भरना।।

फास्फोरस 30 — यकृत में रक्त-संचय तथा यकृत की क्षीणता में भी यह उपयोगी है। इसी तरह यकृत के कड़ा पड़ जाने में भी इससे लाभ होता है। इसका रोगी शीत-प्रधान होता है।

आर्सेनिक आयोडाइड 3x — यह औषधि भी यकृत के कड़ेपन को दूर करने में सक्षम है।

यकृत की क्षीणता

वेनेडियम 6 — यकृत की तथा धमनियों की क्षीणता में उपयोगी है। रोगी को ऐसे लगता है, मानो हृदय सिकुड़ा जा रहा है, सारी छाती पर बेचैनीपूर्ण बोझ महसूस होता है।

फास्फोरस 30 — इस रोग में सबसे मुख्य औषधि यही है।

यकृत यकृत (जिगर) में फोड़ा (Liver Abscess)

यकृत की जगह पर भयानक दर्द होता है। यह दर्द पीठ और कंधे तक फैल जाता है। यकृत का दाहिना अंश बड़ा हो जाता है। पेट का दाहिना भाग-बाएं पाश्र्व की अपेक्षा बड़ा और भारी दिखाई देता है। इस रोग में मलेरिया के सब लक्षण प्रकट होते हैं, बहुत अधिक पसीना आता है, चेहरा कुछ पीला दिखाई देता है। अधिकतर युवकों को ही रोग अधिक होता है। बालक और वृद्धों को यह रोग नहीं होता, स्त्रियों को नाममात्र को होता है। इस रोग में जल्दी-जल्दी श्वास चलता है, थोड़ी खांसी भी रहती है। मानसिक सुस्ती, स्नायविक दुर्बलता, तंद्रा, चेहरा उतरा हुआ कुछ पीले रंग का दिखाई देता है। ये सब इस रोग के लक्षण हैं।

जब यकृत का यह फोड़ा पक कर प्लुरा में फटता है, तो सीने में पीब संचय हो जाता है। यदि पाकाशय में फटता है, तो मुंह से पीब व रक्त निकलता है; बड़ी आंत में फटता है, तो मलद्वार से पीब या रक्त निकलता है, फेफड़े में फटने पर खांसी आती है और बलगम के साथ पीब-रक्त निकलता है। यदि इन स्थानों से पीब-रक्त निकले, तो अच्छा है। यदि किडनी आदि में फट जाए, तो रोगी की जान जाने की संभावना अधिक रहती है।

कैलि कार्ब, लैकेसिस, लाइकोपोडियम, मरियस, हिपर सल्फर, फास्फोरस, साइलीशिया, कैल्केरिया सल्फ आदि औषधियां लक्षणानुसार प्रयोग करनी चाहिए। साधारण फोड़े में जिन औषधियों की आवश्यकता होती है, इसमें भी उन सभी औषधियों की आवश्यकता होती है।

लीवर सिरोसिस (Liver Cirrhosis)

बहुत अधिक शराब पीने वालों को यह रोग हो जाता है। यकृत के किसी पुराने प्रदाह से भी इसकी उत्पत्ति होती है। इसमें यकृत छोटा हो जाता है और यकृत के भीतर और यकृत से शरीर के अंदर रक्त के आने-जाने में बाधा पड़ने के कारण यकृत-कोष नष्ट हो जाते हैं। इससे रोगी बहुत कमजोर हो जाता है, छाती की पसलियां बाहर निकल पड़ती हैं। इस समय यकृत में खासा दर्द रहता है, तिल्ली बड़ी हो जाती है, सीने और पेट के ऊपर की शिराएं मोटी और ऊंची हो जाती हैं। सवेरे के समय वमन, जी मितलाना, निद्रा न आना, पेट फूलना, पेट की गड़बड़ी और थोड़ा ज्वर रहता है, मूत्र भी थोड़ा होता है, पैर फूल जाते हैं, पेट में पानी इकट्ठा हो जाता है, मुंह से रक्त आता है, मल के साथ भी रक्त निकलता है। मृत्यु के पहले बेहोशी, भूल बकना, मूच्र्छा प्रभूति लक्षण पैदा हो जाते हैं।

कैलि बाईक्रोम 30 — अधिक बीयर पीने के कारण रोगोत्पत्ति में।

एसिड फ्लोर 200 या नक्सवोमिका 30 — अधिक शराब पीने के कारण रोग में।

आर्सेनिक 30 — यह बहुत उत्तम औषधि है, विशेषकर मलेरिया के कारण सिरोसिस होने पर यकृत और प्लीहा दोनों ही बढ़ जाते हैं और पेट की गड़बड़ी, शोथ-प्रभृति रहने पर इससे लाभ होता है।

रोग की पहली अवस्था में — मैग्नेशिया म्यूर, ब्रायोनिया, चेलिडोनियम, मर्क्युरियस, काडुअस मेरि, एसिड-नाइट्रो-म्यूर, पोडोफाइलम औषधियां लाभ करती हैं।

उपदंश के लक्षण रहने पर — यदि रोगी को गर्मी का रोग हो अर्थात् उसमें उपदंश के लक्षण रहें तो कैलि आयोड, मर्करी, हिपर सल्फर, एसिड नाइट्रिक लाभ करती हैं।

शोथ रहने पर — एपिस, एपोसाइनम, आर्सेनिक, इलाटिरियम, मर्करी आदि।

इनके अतिरिक्त इस रोग की अन्य औषधियां-कुरारी, एसिड फ्लोरिक, हाइड्रोकोटाइल, आयोडम, लाइकोपोडियम, फास्फोरस, प्लम्बम आदि औषधियां भी लक्षण मिलाकर प्रयोग करें।

शिशु यकृत (जिगर) के रोग (Infant Liver Disease)

साधारणतः प्रसूता के दूध में दोष रहने के कारण अर्थात प्रसूता को अम्ल का रोग रहने के कारण वही दूध पीकर संतान को भी यह रोग हो जाता है। बच्चे को यदि मलेरिया हो जाता है, तो भी यकृत का रोग हो जाता है। बच्चे की आंख, मुंह, समूचा शरीर, मूत्र, पसीना आदि पीले रहते हैं और उसके साथ ही शोथ अर्थात हाथ-पैर यदि फूल जाए, तो समझ लें कि जीवन की आशा बहुत कम है, पर शोथ या कामला होने के पहले यदि ठीक से उपचार होता है, तो कुछ आशा की जा सकती है।

कैल्केरिया आर्स 30 — यह बच्चों के यकृत और प्लीहा बढ़ने की एक प्रधान औषधि है।

कैलि आयोड 30 — डॉ० बोरिक ने ग्रंथियों पर इस औषधि की विशेष क्रिया रहने के कारण शिशु-यकृत के रोग में-सर्वसाधारण से एक बार इसकी परीक्षा करने का अनुरोध किया है।

यकृत यदि बहुत कड़ा रहे — मर्क्युरियस आयोड, मर्क्युरियस बिन-आयोड, कैल्केरिया कार्ब, कैल्केरिया आयोड।

कामला होने पर — चायना, मर्क्युरियस, चेलिडोनियम, नक्सवोमिका।

शोथ होने पर — एपिस, आर्सेनिक, एसिड म्यूर।

अतिसार में — पोडोफाइलम, एलो आदि।

खांसी रहने पर — फास्फोरस, ब्रायोमिया, मर्क्युरियस, हिपर सल्फर।।

रक्तस्राव में — क्रोटेलस, हैमामेलिस, चायना, लैकेसिस, नाइट्रिक एसिड।

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