बाल अस्थि-विकृति का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Rickets, Rachitis ]
शरीर की हड्डियों को पुष्ट न होना, हड्डियों नरम रह जाना, उनकी वृद्धि रुक जाना; अर्थात हड्डियों का न पनपना; इस कारण स्वास्थ्य खराब होते जाना तथा शरीर के यंत्रों की क्रिया ठीक तरह से न होना; इस प्रकार के रोग को “रिकेट्स” या “रैकाइटिस” कहते हैं। यह रोग विशेषकर बच्चों को हुआ करता है। इसे “बलास्थिविकृति” कहा जाता है। इस रोग में हड्डियों में फॉस्फेट ऑफ लाइम का अंश घट जाता है और मूत्र में लैकिक-एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। यह रोग छह महीने से लेकर ढाई-तीन साल तक के बच्चों को हुआ करता है। अधिक खाने पर भी इन बच्चों का शरीर पुष्ट नहीं होता।
ऐसाफिटिडा 6 — हड्डियां टेढ़ी और नरम हो जाना, कंठमाला, गंदे बच्चों की विवृद्धि या प्रसारण, सारे शरीर में दर्द, बच्चों को यह मालूम होते ही कि उसे कोई कपड़ा पहनाया जाएगा, वह चिल्लाने लगता है।
बैराइटी कार्ब 6, 30 — बच्चे की सर्वाकृति या छोटा रह जाना, गठन पूरा न होना, ग्रंथियों का फूलना और कड़ी हो जाना, पेट कड़ा और फूला हुआ मालूम होना; सिर, कान और नाक पर रूसी जमना; आंखों में प्रदाह, चेहरे पर सूजन, शरीर दुबला-पतला, किंतु खाना अधिक।
कैल्केरिया कार्ब 30 — देर से दांत निकलना, बहुत दिनों तक चलना न सीखना, ब्रह्मरंध की हड्डी न जुड़ना, पेट बड़ा मालूम होना, सफेद पतला झागदार दस्त, मेरुदंड (रीढ़) टेढ़ा हो जाना, विकलांग हो जाना, जबड़े की गांठें फूल जाना, अन्य गांठों में सूजन, त्वचा का रंग स्वाभाविक रहना, सोते समय पसीना अधिक आना, हर समय बिस्तर पर पड़े रहना।।
कैल्केरिया फ्लोर 30 — नवजात यानी हाल के पैदा हुए बच्चे की ललाट के बगल की हड्डी बड़ी हो जाना या फूल जाना, दांतों के ऊपर का बारीक आवरण घट जाना, गंडमाला, गरदन की गांठे पत्थर की तरह सख्त हो जाना आदि लक्षणों में यह औषधि उपयोगी है।
कैल्केरिया फॉस 3x — पीठ की किसी कशेरुका की सूजन या क्षय से रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो जाना; रोगी सीधा नहीं चल सकता, एक तरफ को टेढ़ा होकर चलता है, इसमें यह लाभप्रद है।
ऐंगास्टियुरा 6x, 30 — हाजमें की गड़बड़ी, अम्ल या खट्टी कै होना, जिह्वा पर मैल जमना, पेट फूलना, समस्त गांठों को चटकना, सारे शरीर में कमजोरी, केरीज और उसमें जोर का दर्द।
कॉस्टिकम 6 — ठीक तरह से न चल सकना, जरा-से में गिर जाना, हड्डियों का कांपना, ठंडी वायु सहन न होना, हिलने-डुलने से बहुत अधिक पसीना आना, इन लक्षणों में यह दें।
फ्लोरिक एसिड 6x — लंबी हड्डी की पीड़ा, अस्थि-क्षत, हड्डी सड़ना, मांस-पेशियां नरम और थुलथुली हो जाना, दुबला-पतला होना या सूख जाना, शरीर का रंग फीका होने पर दें।
गेटिसबर्ग सॉल्ट 3, 30 — छोटे बच्चों की पीठ की रीढ़ टेढ़ी हो जाना, टेढ़ी रीढ़ (मेरुदंड) के हर तरफ फोड़े हो जाना, गांठों में दर्द, प्रत्येक ऋतु-परिवर्तन के समय रोग होना, हड्डियों की अधिक वृद्धि और उसमें क्षत होना, इन लक्षणों में यह औषधि उपयोगी है।
कैलि हाइड्रो 30 — ग्रंथियों की विवृद्धि या प्रसारण, हड्डियों का फूलना, खोपड़ी में कड़ा गूमड़ा निकलना, दांत बर्बाद हो जाना, अंगों में कटने-फटने जैसा दर्द, अस्थि-बंधनी यानी टेंडन का अकस्मात स्पंदन और संकोचन, सिर में स्पर्श-असह्य दर्द, इन लक्षणों में यह उपयोगी है।
लाइकोपोडियम 30 — गांठों का फूलना, हाड़ नरम हो जाना, रात को हाड़ों में दर्द होना, दांतों में लाल-लाल मैल जमना, बहुत प्यास का अनुभव करना इत्यादि में बहुत उपयोगी है।
एसिड फाँस 30, 200 — बच्चे का बहुत जल्दी-जल्दी बढ़ना, कमजोरी के कारण सभी चीजों से उपेक्षा भाव, उदास और पीड़ित दिखाई देना, चलने में लड़खड़ाना, गांठों में बिना दर्द की सूजन, अंग-प्रत्यंग एकदम ठंडे और भीगे-भीगे से मालूम होना आदि में यह औषधि प्रयोग करें।
रूटा 6 — टेढ़ा-मेढ़ा या लड़खड़ाते हुए चलना, जांघों में बल की कमी और दर्द हो। नीचे का अंग स्थिर न रख सकना, पड़े-पड़े बराबर इधर-उधर करवट बदलते रहना, त्वचा का फट जाना।
साइलीशिया 30, 200 — ब्रह्मरंध खुल जाना, समस्त शरीर सूख जाना, सिर बहुत बड़ा, चेहरा मलिन, पेट फूलना और गरम होना, एड़ी कमजोर, सिर में खट्टी गंध आना, अस्थि का प्रदाह, हड्डी में घाव, फोड़े इत्यादि होना। रोगी का बहुत विलंब से आरोग्य होना।
सल्फर 30 — चेहरा मलिन और आंखें बैठ जाना, आंखों के किनारे पर लाल दाग पड़ना, कंठमाला, अतिसार, मलद्वार की त्वचा गल जाना, गरदन की हड्डी में चटकने की आवाज होना, मेरुदंड टेढ़ा हो जाना, रीढ़ की हड्डी नरम और ग्रंथियों का कड़ा हो जाना इत्यादि।
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