पीठ का धनुष की तरह अकड़ जाना (धनुष्टंकार) का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Tetanus (Opisthotonus) ]

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यह एक भयंकर संक्रामक रोग है। इस रोग का प्रकोप इतनी तेजी से होता है कि रोगोपचार करते-करते ही रोगी मृत्यु का शिकार बन जाता है। यह बैसिलस टिटनेस नामक शलाकाकार जीवाणुओं के संक्रमण से होता है। ये जीवाणु गाय, घोड़े की अंतड़ियों में चिपके रहते हैं। जब घोड़े लीद करते हैं, तो उसके साथ जीवाणु निकलकर इधर-उधर बिखर जाते हैं और जब किसी व्यक्ति के अंग पर लग जाते हैं, तो उनकी विष-प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। जीवाणुओं के तीव्र विषक्रमण से तुरंत टिटनेस के लक्षण स्पष्ट होने लगते हैं। अधिकांश स्त्रियां प्रसव के साथ इस रोग की शिकार होती हैं। यह रोग होने पर सबसे पहले रोगी की गरदन में अकड़ाव (ठोसता) उत्पन्न होती है। यह अकड़ाव हाथ-पैरों की मांसपेशियों में संकोचन उत्पन्न कर देता है। इसमें बहुत पीड़ा होती है। मुंह खुलना बंद हो जाता है। चेहरे पर शोथ के चिह्न स्पष्ट होते हैं। इसमें कमर धनुष की भांति मुड़ जाती है। इसे “धनुषटंकार” के अलावा “धनुर्वात” भी कहते हैं।

नक्सवोमिका 2x — भयंकर खींचन, मांसपेशियां कड़ी; छाती और गले की पेशियों पर रोग का आक्रमण होने के कारण रोगी को श्वास लेने में कष्ट होता है, तब यह लाभ करती है।

जेलसिमियम 6 — जबड़ा और गरदन का पिछला भाग कड़ा, उसमें दर्द, अन्ननली में अकड़न के कारण कुछ भी निगलने में कष्ट, छाती में आक्षेपिक दर्द, पैर में ऐंठन की तरह दर्द, श्वास-कष्ट।

एन्सिटियुरा बेरा 200 — दांती लगना, जबड़े अटक जाना, गरदन कड़ी हो जाना, धनुषटंकार की तरह अकड़न, विद्युत का झटका-सा लगना और खींचन आदि में यह औषधि उपयोगी है।

साइक्यूटा 30 — समूचा शरीर लकड़ी की तरह कड़ा रहता है, खींचन होती है, गरदन पीछे की ओर टेढ़ी पड़ जाती है, श्वास छोड़ने में कष्ट होता है, हिलने से अकड़न होती है, तब इसे दें।।

हाइपेरिकम 3x, 6x — स्नायु में चोट लगकर यह रोग हो जाने पर यह औषधि अधिक लाभ करती है। चोट वाली जगह पर घात में भयानक दर्द होता है। यह अन्य औषधियों की अपेक्षा इसमें अधिक लाभ करती है।

वेरेटूम एल्बम 200 — दांती लगना, ज़बड़ा कड़ा हो जाना आदि में अधिक उपयोगी है।

लैकेसिस 200 — शरीर कांपता है, पीठ में तीर गड़ने की तरह दर्द होता है, गरदन पीछे की ओर टेढ़ी पड़ जाती है। फिर दांती लगना, जबड़ा अटक जाना, रात में निद्रा न आना आदि।

फाइजस्टग्मा (मूल-अर्क) — मांसपेशियों का कांपना या कंपकंपी होकर पक्षाघात होना, आंखों की पुतलियों का फैलना, श्वासयंत्र की पेशी की अकड़न। इसका मूल-अर्क 10 बूंद आधे गिलास पानी में मिलाकर उसकी 2-1 चम्मच की मात्रा में प्रति 2-3 घंटे के अंतर से प्रयोग करें।

एसिड हाइड्रो 6 — रोगी का चेहरा नीला और ठंडा रहता है, हृदय की गति घट जाती है। वक्षोदर मध्यस्थ पेशी के संकोचन के कारण श्वास छोड़ने में कष्ट होता है। गरदन टेढ़ी होती है।

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