रीढ़ की हड्डी का सूजन का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Transverse Myelitis ]

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स्नायु-मंडल की दुर्बलता इस रोग का कारण है, इसके परिणामस्वरुप मेरुदंड में टेंडरनैस आ जाती है, जिससे दर्द और पीड़ा होती है; टांगों में कमजोरी आ जाती है, जरा-से काम से ही बहुत थकावट महसूस होने लगती है।

फाइजोस्टिग्मा 3 — रोगी-अंग दर्द से पीड़ित होता है, मेरुदंड में जलन होती है। शरीर का हरेक स्नायु उत्तेजित रहता है, हाथ-पैर सो जाते हैं, कमर की मांस-पेशियां अकड़ जाती हैं।

एगारिकस 30, 200 — मेरुदंड में जलन और दर्द का अनुभव होता है। शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में अकड़न होती है। मेरुदंड में दर्द इधर से उधर दौड़ता है, कमर में भी दर्द होता है।

टेल्यूरियम 30 — गले की आखिरी हड्डी से लेकर मेरुदंड की पांचवीं कशेरुका तक के हिस्से में दर्द, उसे स्पर्श करने से भी दर्द होता है।

बैसीलीनम 200 — यदि क्षय-रोग की प्रवृत्ति हो और उसके साथ मेरुदंड-प्रदाह के लक्षण हों, तो इस औषधि की 200 शक्ति की एक मात्रा सप्ताह में एक बार देते रहना चाहिए।

थूजा 6 — यह औषधि मेरुदंड के प्रदाह में उपयोगी है।

जिंकम मेट 6 — मेरुदंड के अंतिम कशेरुका में दर्द के कारण बैठा नहीं जाता, किंतु चलने में कष्ट नहीं होता। मेरुदंड में जलन होती है, अंग कांपते हैं, शरीर में थकावट और शिथिलता रहती है।

कौक्युलस 30 — कमर में कमजोरी और दर्द, गरदन का अकड़ जाना, उन्निद्रता; सब इंद्रियों का उत्तेजनशील हो जाना, बार-बार सिर चकराना, अंगों का कंपन आदि में उपयोगी है।

नक्सवोमिका 30 — मेरुदंड का प्रदाह, जलन, प्रातःकाल टांगों में शक्ति का न रहना।

सिमिसिफ्यूगा 3 — गर्भाशय-संबंधी दोषों के कारण जब मेरुदंड में प्रदाह होता है, तब यह औषधि लाभप्रद है। दर्द शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जगह बदलता रहता है। पीठ के नीचे दर्द होता है, टांगों में कमजोरी महसूस होती है, रोगिणी का चित्त खिन्न रहता है। इन लक्षणों की उत्पत्ति का केंद्र गर्भाशय की विकृति होता है। ऋतु के अवरुद्ध होने में तथा ऋतु-विकार से मेरुदंड के प्रदाह और मेरुदंड में जलन का अनुभव होने पर इसका प्रयोग करना चाहिए।

नैट्रम म्यूर 30 — रोगी की कशेरुकाओं के बीच दुखन होती है, छूने से, दबाने से दर्द होता है। मेरुदंड की शिथिलता के कारण पक्षाघात में उपयोगी है। रोग प्रातःकाल बढ़ जाता है।

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