मासिक धर्म का विलंब का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Treatment For Delayed Menstruation ]

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भारत देश में प्रायः स्त्रियों को 13-14 वर्ष की आयु में आरंभ होकर 45-50 वर्ष की आयु तक प्रति मास नियमित रूप-से रजःस्राव हुआ करता है। किसी-किसी लड़की के जवान हो जाने पर भी ऋतु होने में विलंब होता है या एक बार होकर पुनः बंद हो जाता है। स्नायविक-दुर्बलता, बहुत दिन तक कोई रोग भोगने के कारण से शरीर का दुर्बल हो जाना और रक्त की कमी के कारण से अथवा योनि के मुंह पर की आवरक-झिल्ली के न फटने के कारण से प्रथम रजोदर्शन में विलंब होता है। ऐसे में सिर भारी और दर्द, नाक से और कभी-कभी मलद्वार से रक्त गिरना, छाती धड़कना, श्वास लेने और छोड़ने में कष्ट मालूम होना, कमर और उस में भारी महसूस होना और तलपेट में दर्द प्रभृति लक्षण रहते हैं।

सिनिसियो 6 — प्रथम बार के रजःस्राव में विलंब या एक-दो बार ऋतु होकर बंद हो जाना, पीड़ा देने वाली या अनियमित ऋतु होकर बंद होना, कष्ट देने वाला थोड़ा या अनियमित ऋतु। इसकी 8 से 10 बूंद पानी में मिलाकर सेवन करें।

पल्सेटिला 30 — पेट और पीठ में दर्द, सिर में दर्द, अरुचि, सदैव ठंड मालूम होना, आलस्य, मिचली, छाती धड़कना, रक्त की कमी।

एकोनाइट 3x — एक बार रजःस्राव होकर एकाएक सर्दी लगकर या डर से ऋतु बंद हो जाने पर इसका प्रयोग होता है।

ब्रायोनिया 30 — रजःस्राव के बदले नाक या मुंह से रक्त निकलना, सूखी खांसी, सीने में सुई गड़ने की तरह दर्द और कब्जियत।

सिमिसिफ्यूगा 6 — डिम्बकोष की स्नायु-शक्ति की क्षीणता के कारण रजःस्राव न होना, सिर में दर्द, रक्त की कमी, बाएं स्तन में पीड़ा।

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