Jalandhara Bandh Method and Benefits In Hindi

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जालंधर बंध

कण्ठसंकोचनं कृत्वा चिबुकं हृदये न्यसेत्।
जालन्धरेकृति बन्धे षोडशाधारबन्धनम्॥
जालन्धरमहा मुद्रामृत्योश्च क्षयकारिणी।
सिद्धो जालन्धरो बन्धो योगिनां सिद्धिदायकः।
षण्मासमभ्यसेद्यो हि स सिद्धो नात्र संशयः॥ (घे.सं. 3/10-11)
शाब्दिक अर्थ: जाल का शाब्दिक अर्थ जाला, जाली।

विधि

पद्मासन, सिद्धासन, स्वास्तिकासन या भद्रासन में बैठे। पीठ, गर्दन तथा छाती को सीधा रखें। दोनों हाथों को घुटनों पर रखिए। लंबी श्वास लें (पूरक करें) और अंतकुंभक करें। सिर को सामने की तरफ़ झुकाइए। ठुड्डी को छाती के ऊर्ध्वभाग (हंसलियों के बीच) में दबाइए। परंतु छाती (सीना) को ऊँचा उठाएँ ताकि ठुड्डी का स्पर्श आसानी से हो सके। ग्रीवा भाग को न तो दबाएँ और न ही नीचे की तरफ़ धकेलें। गले की माँसपेशियाँ शिथिल रखें। ठुड्डी रखने का स्थान कंठकूप एवं सिर एक सीध में रखें। अब जितनी देर सामान्य कुंभक कर सकें उतनी देर रुकिए। शरीर शिथिल कीजिए तथा सिर ऊपर की तरफ़ उठाइए व धीरे-धीरे श्वास छोड़िए। यह जालन्धर बंध कहलाता है। इस प्रकार यह आवृत्ति 5 से 10 बार करें।
विशेष: शास्त्रों में आया है कि सिर के ऊर्ध्व भाग में स्थित सहस्त्रदल कमल से टपकने वाले अमृत स्त्राव को सभी प्राणियों की नाभि में स्थित अग्नि अंदर ही जलाती रहती है। अतः जालंधर बंध का अभ्यास कर साधक उस अमृत का पान कर चिरंजीवी बनें।
प्रभाव: यह इड़ा और पिंगला नाड़ियों को भी दबाता है और सुषुम्ना (सरस्वती नाड़ी) द्वारा प्राण प्रवाहित करता है।

लाभ

मस्तिष्क को आराम मिलता है, अहंकार का नाश तथा बुद्धि को निर्मल करता है। विशुद्धि चक्र को जगाता है। कण्ठ-दोष दूर कर वाणी को शुद्ध करता है। मानसिक अवसाद, चिंता, तनाव क्रोध, चिड़चिड़ापन को दूर करता है। मानसिक एकाग्रता बढ़ाता है एवं स्मरण शक्ति तेज़ करता है। सम्पूर्ण शरीर को निरोग रखता है।
नोट: यह बंध खड़े होकर भी किया जा सकता है।

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