Sahasrara Chakra Method and Benefits In Hindi
सहस्त्रार चक्र
सिर के ऊपरी भाग में अवस्थित उच्चतम चेतना का केंद्र है। सहस्र दल वाले पूर्ण चंद्र के समान श्वेत वर्ण वाला अधोमुखी पद्म है जिसमें संस्कृत के सभी वर्ण सूर्य जैसी किरणों की कांति वाले दैदीप्यमान रूप से सुशोभित हैं। इस सहस्त्र दल में बीस घेरे हैं जिसके प्रत्येक घेरे में पचास दल हैं। इसमें विसर्ग ब्रह्मरंध्र के ऊर्ध्व भाग में है। यह सम्पूर्ण शक्तियों का केंद्र-स्थल है। इस पद्म के बीज-कोष में प्रकाशमान शिवलिंग है जो कि आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है। वह अपनी महाशक्ति के साथ विराजमान है। इसका तत्व तत्वातीत है। तत्व बीज विसर्ग है और तत्व बीज-गति बिंदु है। इसका यंत्र शुभ वर्ण का पूर्ण चंद्र है।
इस परमात्मा रूपी सहस्रार की सिद्धि से असम्प्रज्ञात समाधि की अवस्था प्राप्त हो जाती है। यहाँ पहुँचने पर साधक की चित्त वृत्ति लय को प्राप्त हो जाती है। यहाँ की स्थिति निर्विकल्पता या निर्विकार रूप है। अतः साधक सहज समाधि की अवस्था को भी प्राप्त होता है। साधक को यहाँ उस दिव्य ज्ञान की अनुभूति होती है जिसमें अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख और अनंत शक्ति का चरण प्रारंभ होता है।
सहस्त्रार चक्र के विकार ग्रस्त होने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक अवस्था का ज्ञान नहीं रहता है। अतः क्रमशः धैर्यपूर्वक चक्रों की अवस्थिति को समझते हुए पूर्ण सावधानी पूर्वक योग्य गुरु के सन्मुख रहते हुए साधकगण अपने मार्ग पर अग्रसर हों।
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