Shaktichalini Mudra Method and Benefits In Hindi
शक्तिचालिनी मुद्रा
विधि
घेरण्ड संहिता के अनुसार मूलाधार में जो कुण्डलिनी साढ़े तीन लपेटे कुण्डली मारकर सो रही है, जब तक यह सुप्त अवस्था में है तब तक जीव अज्ञानी ही रहता है। अतः सम्यक् ज्ञान प्राप्ति तक इसको जगाने का अभ्यास करना चाहिए। जैसे बिना ताला खोले द्वार नहीं खोला जा सकता वैसे ही कुण्डलिनी शक्ति जागरण के बिना ब्रह्मरंध्र का द्वार नहीं खुल सकता। एकांत स्थान में जाकर एक हाथ लंबा और चार अँगुल चौड़ा कोमल वस्त्र नाभि से लपेटकर कमर में बाँधे। शरीर में भस्म, राख आदि लगाकर सिद्धासन में बैठ जाएँ। अब प्राण को खींचकर अपान वायु से मिलाएँ। अब अश्विनी मुद्रा द्वारा गुदा स्थान को संकुचित करते रहें। इस प्रकार कुंभक करने से सर्प रूपिणी कुण्डलिनी जागकर ऊपर की ओर उठती है। शक्ति चालिनी मुद्रा के अभ्यास के बाद योनि मुद्रा का अभ्यास करें।
लाभ
- प्रतिदिन अभ्यास से विग्रह-सिद्धि सहित सर्व सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
- सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग समाप्त होते हैं।
- आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है।
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