मोटापा का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Corpulence, Obesity ]

798

समूचे शरीर में, त्वचा के नीचे अधिक परिमाण में चर्बी बढ़ जाने को “मेद-वृद्धि” या स्थूलकाय रोग कहते हैं। श्वास में कष्ट, थोड़े परिश्रम से ही हांफ जाना, रक्त का ठीक प्रकार से संचालन न होना आदि उपसर्गों के कारण रोगी का शरीर और मन सदैव बिगड़ा हुआ रहता है। युवावस्था और प्रौढ़ावस्था में ही सदा यह मेद रोग दिखाई देता है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को यह रोग अधिक हुआ करता है। माता-पिता को यह रोग रहने पर उनकी संतान को भी यह हो जाता है। अधिक परिमाण में घी, तेल और मक्खन आदि का सेवन करना, अधिक खाना-पीना, बिना किसी चिंता के काम-धंधा करना और गृहस्थी चलाना, कोई शारीरिक या मानसिक कार्य न करना आदि कारणों से मेद-वृद्धि हो जाती है।

ग्रैफाइटिस 3x — स्त्रियों की मेद-वृद्धि में यह बहुत लाभ करती है। इस औषधि के तीन-चार सप्ताह तक प्रयोग करने से ही लाभ दिखलाई पड़ता है।

फाइटोलैक्का 6 — इस औषधि की 2-3 बूंद एक महीने तक नित्य सेवन करने से लाभ होता है।

फ्यूकस वेसिक्यूलोसस 8 — इसकी 5-6 बूंद नित्य 2 बार सेवन करना मेद-वृद्धि में उपयोगी है।

ऐमोन-बोम 3x — यदि फ्यूकस से कोई लाभ न हो, तो यह देनी चाहिए।

बैराइटा-कार्ब 6 — जब मेद-वृद्धि में किसी भी औषधि से लाभ होता दिखाई न दे, तो इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे लाभ अवश्य ही हो जाता है।

Comments are closed.