रीढ़ की हड्डी (मेरुदण्ड) के रोग का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Spinal Cord Diseases ]
चलते समय गिर कर चोट लग जाने, रीढ़ की हड्डी के चटख जाने, अधिक सर्दी लगने, तीव्र ज्वर होने अथवा अधिक परिश्रम करने के कारण कभी-कभी मेरुदंड में समस्या उत्पन्न हो जाती है। तेज जलन होती है और शरीर में खिंचाव उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में रोगी प्रायः लकवे का शिकार हो जाया करता है।
साइक्यूटा 3 — मेरुदंड में चोट आदि के कारण तेज दर्द, अत्यधिक खिंचाव, रोगी बेचैन हो जाए, तब इस औषधि से लाभ होता है। हरेक तीन घंटे के बाद एक डोज दें।
बेलाडोना 6, 30 — यदि मेरुदंड के ऊपरी हिस्से में रोग का आक्रमण हो, मेरुदंड में चाकू चुभने जैसी पीड़ा हो, मांस-पेशियों में फुदकन-सी हो मानो विद्युत ने स्पर्श किया हो, तब यह दें।
एकोनाइट 3 — मेरुदंड में तेज दर्द, धनुषटंकार जैसी खींचन हो, तब उपयोगी है।
नक्सवोमिका 3, 6 — शरीर को चीर देने वाली पीड़ा और भयानक दर्द में लाभकारी है।
औग्जैलिक एसिड 3x — मेरुदंड में चनका आ जाने जैसा दर्द हो और पैर कड़े पड़ जाएं, तब दें।
प्लम्बम 6 — मेरुदंड के पुराने पक्षाघात में लाभप्रद है।
आर्सेनिक 3 — पक्षाघात वाले अंग में खिंचाव, रीढ़ की हड्डी में चुभन जैसा दर्द, अकड़न, बेचैनी, अत्यधिक ठंड-सी लगना और ऐसे में रोग की वृद्धि होना, दर्द कायम रहना आदि में दें।
गन पाउडर 3x — यदि हड्डी के भीतर की मज्जा (चर्बी) का प्रदाह हो, तो इसकी 4 ग्रेन की मात्रा प्रति 4 घंटे देनी चाहिए।
Comments are closed.