Homeopathic Treatment For Remittent Fever In Hindi

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प्राय: यह पहले सामान्य ज्वर के लक्षण के साथ ही होता है। इसके पश्चात अन्य ऐसे लक्षण प्रकट होते हैं, जिससे प्रभेद समझ में आ जाता है। यह ज्वर एकदम छोड़ नहीं जाता, केवल कुछ देर के लिए शरीर का ताप कुछ कम (99 डिग्री) रहता है और फिर ज्वर तेज हो जाता है। इसमें हल्का-सा जाड़ा लगकर ज्वर चढ़ता है, सामने कपाल में दर्द, यकृत का दोष, कब्जियत, अतिसार आदि इस रोग के विशेष लक्षण हैं। इसका भोगकाल डेढ़ से दो सप्ताह है। पित्त की अधिकता रह जाने पर, चार सप्ताह तक रोग ठहर सकता है। बहुत पसीना आकर कभी-कभी ज्वर उतर भी जाता है। ज्वर उतरने की दशा में नीचे 102 डिग्री तक उतरता है और ऊपर 105-106 डिग्री तक चढ़ता है। अधिकांश स्थानों में सवेरे ज्वर घटता है, इसके बाद दोपहर के समय बहुत बढ़ता है और आधी रात के बाद से ताप बढ़ने लगता है और सवेरे कुछ थोड़ा-सा घटता है।

पाइरोजेन 200 – तेज प्यास, शरीर में दर्द, बेचैनी और ज्वर की तेजी में तीन घंटे के अंतर से यह औषध देनी चाहिए।

बैप्टीशिया (मूल-अर्क) 12 – प्रख्यात चिकित्सकों का मत है कि रोग के प्रारंभ से अंत तक इसका निम्न-शक्ति में प्रयोग करने से ज्वर उतर कर रोगी स्वस्थ हो जाता है। किसी दूसरी औषधि की आवश्यकता नहीं पड़ती। पेट तन जाता है, चेहरा फूल जाता है, रोगी ऊंघता है और फिर तंद्रा में पड़ जाता है।

ब्रायोनिया 12, 30 – जब ज्वर कब्ज प्रधान हो, तेज प्यास हो, रोगी बहुत पानी पीता हो, चुपचाप पड़ा रहना चाहता हो, तब यह औषधि उपयोगी है।

रस-टॉक्स 30 – ज्वर की अधिकता के कारण रोगी बेचैन हो, इधर-उधर करवटें बदलने से उसे चैन पड़ता हो, तब यह औषध लाभप्रद है।

आर्निका 30 – रोगी अधिक ज्वर से पीड़ित होता है, तंद्रा में पड़ा रहता है, बदबूदार श्वास और बदबूदार मल आता है, अनजाने मल-मूत्र निकल जाता है, तब यह औषधि दी जानी चाहिए।

कार्बोवेज 30 – ज्वर अधिक हो, ऐसा लगे कि रोगी की जीवनी-शक्ति का पतन हो रहा है। शरीर ठंडा पड़ जाए, ठंडा पसीना आने लगे; अत्यन्त क्षीणता हो, चेहरा तथा शरीर बिल्कुल पीला, रक्तहीन-सा पड़ जाए, तब यह औषधि मृत-संजीवनी का काम करती है।

फास्फोरिक एसिड 1 – ज्वर रोग के आरंभ से ही शारीरिक अंग-प्रत्यंग तथा मानसिक शक्तियों का ह्रास हो, शक्तिहीनता बढ़ती चली जाए, रोगी तंद्रा में पड़ा रहे। रोगी का पेट फूलकर सख्त हो जाए, आंखों में चमक न हो। तब इस औषधि पर विचार करना चाहिए।

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