बुखार के लिए बेस्ट होमियोपैथी दवा [ Homeopathic Medicine For Fever ]

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इस ज्वर का कोई विशेष कारण नहीं रहता, यह बहुत ही हल्के ढंग का होता है और थोड़े ही समय ठहरता है, इसमें कोई विशेष डर की बात भी नहीं रहती और प्राय: प्राणघातक नहीं होता है। सर्दी लग जाना, उत्ताप, बहुत ज्यादा खाना-पीना, अधिक परिश्रम, मन का उद्वेग आदि कारणों से यह ज्वर आया करता है और अधिकतर बच्चों को हुआ करता है। शीत या कंप, समूचे शरीर में दर्द, सिरदर्द, वमन आदि कितने ही लक्षणों के साथ यह ज्वर आता है, इसके बाद ताप बढ़ जाता है। बहुत अधिक प्यास, मिचली, प्रबल वमन, भूख न लगना, बेचैनी, धीमा प्रलाप, शरीर की त्वचा का सूखापन आदि लक्षण प्रकट होते हैं। नाड़ी की गति तेज, पूर्ण और वेगवती रहती है, जीभ पे मैल चढ़ी रहती है, ताप 103 से 104 डिग्री तक चढ़ता है। 2-3 दिनों में ही ताप घट जाता है और सप्ताह भर में इससे मुक्ति मिल जाती है।

ज्वर रहने के समय दूध, साबूदाना, बार्ली, आरारोट, धान का लावा, बताशा, मिश्री, बिस्कुट, भुना हुआ चिउड़ा, अनार, बिदाना, थोड़े मीठे फल आदि और ज्वर उतर जाने पर दो-एक दिन बाद रोटी, चावल, तरकारी आदि दिए जा सकते हैं।

एकोनाइट 6 – यह औषधि रोग की प्रारंभिक अवस्था में लाभ करती है। बहुत प्यास, उद्वेग, बेचैनी, शरीर में जलन, लगातार इधर से उधर करवट बदलना और छटपटाना, रोगी की मृत्यु-भय का होना, कलेजे में दर्द, थोड़ा पेशाब प्रभृति लक्षणों में इसका व्यवहार होता है। रोगी चिड़चिड़ा रहता है, लड़ना-झगड़ना पसंद करता है।

ब्रायोनिया 6, 30 – रोगी चुपचाप पड़ा रहता है, शरीर में दर्द रहता है, औषध देने पर दर्द घटता है; आंखें, कनपटी तथा सिर में बहुत दर्द रहता है। यह दर्द हिलने-डुलने पर बढ़ता है, इसलिए रोगी चुपचाप पड़ा रहता है। उठकर बैठने या सिर उठाने पर सिर में चक्कर आता है, जी मिचलाता है, मुंह का स्वाद खराब रहता है, जिह्वा पीली लेप चढ़ी, प्यास और कभी-कभी बहुत ज्यादा पसीना आता है। पित्त की कै होना, पानी पीते ही वमन होता है; कब्जियत, जाड़ा लगना, मुंह में बदबू, होंठ फटे आदि इसके विशेष लक्षण हैं। इनमें यह औषध अच्छा काम करती है।

बेलाडोना 6, 30 – रोगी का ज्वर तेज रहता है, शरीर भी गरम रहता है, ज्वर के साथ पसीना भी होता है, शरीर का जो अंग दबा रहता है या दबाकर रोगी सोता है, उसी अंग में अधिक पसीना आता है। बहुत ज्यादा पसीना आने पर भी ज्वर में कोई कभी नहीं होती, सिर में तेज दर्द और यंत्रणा, आंखें लाल, रोगी भूत या किसी काल्पनिक जंतु को देखकर डरता है, चौंक उठता है। इसके अलावा जिह्वा पर पीला लेप, मुंह का स्वाद खट्टा, अम्ल, पित्त या लार की तरह लसदार वमन, प्यास, एक बार शीत, एक बार उत्पात, गाल-गले की गांठ फूलना और उसमें दर्द, घूंट लेने में तकलीफ आदि कितने ही लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग होता है।

फरम फॉस 12, 30 – एकोनाइट की तरह ज्वर और प्रदाह की पहली अवस्था में तथा एकोनाइट और जेल्सीमियम के बीच के लक्षणों में इस औषधि का व्यवहार होता है।

रस-टॉक्स 6, 30 – सर्दी लगकर या पानी में भीगकर रोग पैदा होना, सारे शरीर में दर्द, यह दर्द विशेषकर कमर में ज्यादा होता है। रस-टॉक्स में एकोनाइट और आर्सेनिक का तरह छटपटाहट रहती है। किंतु यह साधारणतः शरीर में दर्द रहने के ही कारण, रस-टॉक्स का दर्द हिलने-डोलने पर कुछ घटता है, इसलिए रोगी करवट बदलता रहता है या छटपटाया करता है। ज्वर के साथ खांसी और प्यास रहती है।

इयुपेटोरियम पर्फो 3, 6, 30 – शरीर में हड्डी-तोड़ दर्द, तेज सिरदर्द, कमर में दर्द, ऐंठन की तरह दर्द, पित्त का वमन-ये ही कई इसके प्रधान लक्षण हैं। जाड़ा लगना, कंपकंपी, शरीर में जलन या पर्याय-क्रम से शीत और ताप, जिह्वा मोटी, पीली और मैल से ढकी, यकृत की जगह पर दर्द, पेशाब थोड़ा, पित्त के दस्त आदि भी इसके विशिष्ट लक्षण हैं।

जेल्सीमियम 1x, 6, 30, 200 – साधारणत: बच्चे और बालकों के लिए और हिस्टीरिया वाली स्त्रियों आदि स्नायविक धातु वाले व्यक्तियों के ज्वर में यह औषधि अधिक लाभ करती है। किसी भी ज्वर की पहली अवस्था में-शरीर में दर्द, तमतमाया हुआ लाल रंग का चेहरा, छलछलाती जलभरी आंखें, नाक से कच्चा पानी निकलना, सर्दी, रात्रि में ज्वर का चढ़ना और सवेरे पसीना आए बिना ज्वर का घटना; भूख नहीं लगती, मुंह का स्वाद तीता आदि लक्षण हों, तो इस औषधि का व्यवहार होता है। इसमें रोगी बहुत ही सुस्त हो जाता है और वह सिर्फ सोना चाहता है, यदि कोई शरीर पर हाथ लगाता है, बात करता है या पास आता है, तो वह चिढ़ जाता है। जेल्सीमियम के रोगी का पैर ठंडा और माथा गरम रहता है, प्यास प्राय: नहीं रहती। यह सविराम, अविराम, रेमिटेंट, एक ज्वर, प्लीहा और यकृत संयुक्त ज्वर आदि इस प्रकार के ज्वर में उपयोगी है। 1x शक्ति का व्यवहार पहले किया जा सकता है।

वेरेट्रम विरिड 6, 30 – ज्वर का ताप बहुत ज्यादा होता है (105-106 डिग्री), इसके साथ ही किसी यंत्र में रक्त की अधिकता और गरदन के पिछले भाग में और कंधे में दर्द, शरीर में कंपकपाहट हो, आंखें घूमती हों, रोगी सिर हिलाता हो, वमन, होंठ सूखते हों, तो इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए। 2-3 मात्राओं से अधिक इसका प्रयोग कदापि न करना चाहिए, क्योंकि अधिक मात्रा के प्रयोग से हृत्पिण्ड की क्रिया में गड़बड़ी हो जाती है। बहुत उच्च ज्वर में पाइरोजिन 200, एसिटैनिलिडियम 3x, नैफ्थेलाइन 6 का प्रयोग करना अच्छा रहता है।

इपिकाक 30 – यह सर्दी-ज्वर, स्वल्पविराम-ज्वर, सविराम-ज्वर तथा पाकाशय की गड़बड़ी के कारण पैदा हुए ज्वर में अधिक लाभ करती है। किसी भी ज्वर में वमन, मिचली, मुंह में बदबू, पेट में शूल की तरह दर्द, प्यास, कंपकंपी, पीले या हरे रंग के दस्त आते हैं, तो इस औषधि के प्रयोग से लाभ होता है। इपिकाक की जिह्वा प्राय: साफ रहती है। सर्दी के ज्वर में, नाक में सर्दी भरी रहती है, नाक से रक्त भी गिरता है। ज्वर के साथ खांसी, गला सांय-सांय करना, श्वास में शब्द आदि लक्षण रहने पर इस औषधि का व्यवहार करना चाहिए।

नक्स वोमिका 6, 30 – शीत और ताप या तो पर्याय-क्रम से होता है या केवल सिरहन-सी हुआ करती है। शरीर में असहाय ऐंठन का दर्द, प्रात: रोग-लक्षणों की वृद्धि हो जाती है। इस के अतिरिक्त सीने और गले में जलन, मुंह में तीती डकार, अजीर्ण अवस्था में खाए हुए पदार्थ का वमन। नाभि की जड़ में गड़गड़ की आवाज और शूल की तरह दर्द, कब्जियत, लगातार पाखाना लगना और थोड़ा-सा पाखाना होना। सिर में चक्कर, कपाल में दर्द, जिह्वा पर सफेद या पीली मैल, छींकें, नाक सट जाना आदि लक्षण वाले कई ज्वरों में इस औषधि का व्यवहार होता है।

पल्सेटिला 6, 30 – ज्वर तीसरे पहर या संध्या के 4-5 बजे बढ़ता है। ज्वर के साथ ही साथ हाथ-पैरों में जलन होती है। रोगी खुली हवा में रहना चाहता है। प्यास नहीं रहती। इसके अलावा मुंह में पानी भर आना, वसायुक्त खाने के पदार्थों की खाने की इच्छा न होना, खट्टी चीजें खाने की अधिक इच्छा, मिचली, खट्टा वमन, अजीर्ण, खाई हुई चीजों का वमन, कब्जियत या पित्त के दस्त आदि कितने ही लक्षणों में इस औषधि का व्यवहार होता है। इसमें जीभ पर सफेद मैल चढ़ी रहती है।

बैप्टीशिया 2x, 6, 30 – इसका टाइफायड और इन्फ्लुएन्जा के ज्वर में अधिक व्यवहार होता है। सदैव ही ज्वर रहता है, ज्वर सवेरे कम, पर तीसरे पहर अधिक, ताप के कारण रात में नींद न आना या सिर में दर्द, प्रलाप, पर्याय-क्रम से कब्ज और दस्त, बदबूदार कब्ज, भूख न लगना, बहुत प्यास आदि लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।

कोलोसिन्थ 3x, 6 – पैत्तिक-ज्वर, पेट में एक प्रकार का शूल का दर्द । दबाने पर घटना, अतिसार, आंव मिला मल, पेट में दर्द, कुछ खाने से दर्द का बढ़ जाना, पैर की पोटली में मरोड़ का दर्द इत्यादि में यह औषध सेवन कराएं।

आइरिस वार्स 6, 30 – शरीर अच्छी तरह ढांप लेने पर भी सर्दी का लगना, इसके साथ ही पित्त के दस्त, खट्टा-कड़वा वमन, पेट से लेकर गले तक जलन आदि लक्षण में इस औषध को व्यवहार करें।

एण्टिम टार्ट 6, 30 – बसंत या वर्षा ऋतु का ज्वर, सर्दी, खांसी के साथ ज्वर। कब्ज, रोगी दुर्बल हो केवल सोना चाहता है। वह औंधा-सा पड़ा रहता है, प्यास नहीं रहती। बच्चा माता की गोद से उतरना नहीं चाहता, शरीर पर कोई हाथ लगाता है, तो रोता है।

कैमोमिला 12, 30 – रोगी बहुत ही क्रोधी और चिड़चिड़ा। बच्चा केवल टें-टें किया करता है, रोता है, मानो क्रोध से भरा है, यदि हाथ में कोई चीज दी जाती है, तो उसे तोड़-मोड़ कर फेंक देता है, गोद में लेने पर कुछ शांत रहता है। बच्चों के दांत निकलने के समय उक्त लक्षण किसी भी ज्वर के साथ रहें, तो इस औषधि की 2-1 मात्रा के प्रयोग से लाभ होता है।

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