Khechari Mudra Method and Benefits In Hindi

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खेचरी मुद्रा

विधि

साधक अपनी जिव्हा को उल्टी ले जाकर तालू-कुहर में स्पर्श कराएँ (मुंह बंद रखते हुए) । यह मुद्रा खेचरी मुद्रा कहलाती है। साधक अपनी जीभ को तालू-कुहर से स्पर्श नहीं करा पाता है अतः जिव्हा को बढ़ाने के तीन साधन बतलाए हैं। छेदन, चालन और दोहन।
छेदन: जीभ के नीचे के भाग में एक सूताकार तंतु से जीभ जबड़े से जुड़ी हुई रहती है इस कारण जीभ को पलटकर तालू से लगाना मुश्किल हो जाता है। इसके लिए प्रतिदिन उस तंतु को सैंधा नमक की डली से रगड़े या यदि शल्य क्रिया द्वारा विच्छेद संभव हो तो वह प्रयोग किया जा सकता है। कुछ दिनों के पश्चात् अभ्यास से जिव्हा का अग्रभाग तालू के ऊपरी छिद्र में आसानी से चला जाता है।
चालन और दोहन: अँगूठे और तर्जनी अँगुली से या महीन (बारीक) वस्त्र से जीभ को पकड़कर चारों तरफ़ उलट फेरकर हिलाने और खींचने को चालन कहते हैं।
मक्खन या घी आदि से लगाकर दोनों हाथों की अँगुलियों से जीभ को खींचें (जैसे गाय का स्तन दोहन करते हैं) । धीरे-धीरे आकर्षण करने का नाम दोहन है।
इन सब क्रियाओं में जो सुखद लगे वह गुरु-निर्देशन में करना चाहिए। तत्पश्चात् जीभ इतनी लंबी हो जाती है कि नासिका के ऊपर भूमध्य तक पहुँच जाती है।
सावधानी: उपरोक्त अभ्यास में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। अन्यथा परिणाम ख़तरनाक हो सकते हैं। बिना योग्य शिक्षक के न करें।
विशेष: ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें। सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

लाभ

अभ्यास हो जाने के बाद साधक ब्रह्मरंध्र से टपकने वाले मधुर रस अर्थात् अमृत का पान करता है। जीभ के प्रविष्ट होने पर इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना के मार्ग खुल जाते हैं। जिससे समाधि की स्थिति उत्पन्न होती है। अमृतपान करने से साधक अपनी मृत्यु को भी वश में कर लेता है (दीर्घायु होता है) । निद्रा, आलस्य तथा भूख-प्यास इत्यादि अधिक नहीं सताती।
नोट: हमने कुछ साधक देखे हैं जो कि स्वाभाविक रूप से नित्य प्रति अभ्यास करने पर अपनी जिव्हा को इतनी लंबी कर लेते हैं कि वह तालु-कुहर से स्पर्श हो जाए।

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