Viparita Karani Mudra Method and Benefits In Hindi
विपरीतकरणी मुद्रा
विधि
घेरण्ड संहिता के अनुसार नाभि के मूल में सूर्य नाड़ी है और मुख के तालुओं की जड़ में चंद्र नाड़ी है। जब नीचे से सूर्य नाड़ी अपने तेज से शरीर में स्थित अमृत का पान कर लेती है तब मनुष्य की मृत्यु होती है। इसलिए सूर्य को ऊपर उठाना चाहिए और चन्द्र को नीचे की ओर ले आना चाहिए। इसका नाम विपरीतकरणी मुद्रा है। इसके अभ्यास के लिए साधक सर्वांगासन की तरह ही दिखने वाली विपरीतकरणी क्रिया करें। थोड़े ही प्रयत्न से मूलबंध और उड्डियान बंध स्वयं लग जाएँगे। घेरण्ड संहिता में आचार्य कहते हैं कि तब पूरक प्राणायाम कर कुंभक करें एवं यथाशक्ति रुकें तो इसको विपरीतकरणी मुद्रा कहते हैं।
सावधानी: उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति न करें।
लाभ
- जो साधक प्रतिदिन अभ्यास करता है वह मृत्यु और बुढ़ापे को जीत लेता है।
- इसके प्रतिदिन अभ्यास से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। अतः आहार की मात्रा संतुलित रखनी चाहिए।
- चक्रों का ध्यान करने से ओज, तेज, बल, वीर्य आदि की वृद्धि होती है।
- युवावस्था बनी रहती है एवं स्थिरता प्रदान करता है।
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