Lingakarasana Method and Benefits In Hindi

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लिंङ्गाकारासन

विशेष: लिंग का अर्थ चिन्ह, अनुमान या प्रकृति और शिव की विशेष मूर्ति के लिए किया जाता है। उसमें अन्तर्निहित भाव को समझने के लिए तो विवेक की आँखें चाहिए। शिव की अभिव्यक्ति के लिए कोई यथार्थ प्रकृति कृति हो ही नहीं सकती। कहा भी है कि “न तस्य प्रतिमा अस्ति।” यानी उस दिव्य सत्ता की न कोई प्रतिमा हो सकती है न प्रतिमान। इसलिए उसे गोलमटोल अथवा लम्बाकार पिण्ड के रूप में दिखाया जाता है। शिवलिंग जैसी आकृति होने के कारण इसे लिंङ्गाकारासन नाम से अभिनीत किया गया है।

विधि

यह एक उच्च अभ्यास वाला आसन है। वृश्चिक आसन का अच्छा अभ्यास होने के बाद धीरे-धीरे नितम्बों को पीठ से सटाते हैं एवं जंघाओं को सिर से सटाते हैं। इस प्रकार सिर से कमर तक का भाग नितम्ब, जंघा एवं पैर के समानान्तर हो जाता है और इस स्थिति में नितम्ब, जंघा एवं पैर भी ज़मीन के सामानान्तर हो जाते हैं। पैरों के पंजे सिर से आगे हो जाते हैं।

लाभ

  • शरीर के क्रमशः रोग निवारण में पूर्णतः समर्थ।
  • किसी भी प्रकार के कंपवात का अचूक इलाज़।
  • शरीर में लोच, लचक एवं नई ताज़गी का प्रादुर्भाव होता है।
  • आत्मिक उत्थान में सहायक।
  • इस आसन को करने के बाद लगभग सभी आसन आसानी से किए जा सकते हैं।
  • उदर प्रदेश, फेफड़े, मेरुदण्ड, जंघा, पीठ, कमर आदि सभी में रक्त संचार को सुचारू बनाता है।

सावधानियाँ

  • बहुत अधिक प्रयास के बाद ही संभव है, अतः योग शिक्षक की देख-रेख के बिना न करें।
  • चूंकि साधक का शरीर कमर के हिस्से से इतना मुड़ जाता है कि साधक की पीठ पर जंघा का स्पर्श होने लगता है, अतः महीनों के अभ्यास से ही संभव है।
  • उच्च रक्तचाप, चक्कर आना, हृदय रोग एवं सख्त शरीर वाले आसन न करें। इस आसन को करने के बाद पश्चिमोत्तानासन, पाद हस्तासन करें।

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