Maha Mudra Method and Benefits In Hindi

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महा मुद्रा

विधि

अपने आसन में प्रसन्नचित्त होकर दोनों पैर सामने फैलाकर बैठ जाएँ। अब दाहिने पैर को मोड़ते हुए एड़ी को गुदा द्वार के नीचे रखें। तत्पश्चात् सामने झुकते हुए बाएँ पैर के अँगूठे को दोनों हाथों से पकड़े तथा गहरी श्वास लें। मूल बंध एवं जालंधर बंध लगाएँ। कुंभक करते हुए अंतर्चेतना को ऊर्ध्वमुखी बनाने का प्रयास करें। कुण्डली-चक्रों का ध्यान करें तथा बंध हटाएँ। धीरे-धीरे रेचक क्रिया करें। यही क्रम दाहिने पैर से करें एवं यथासंभव कुंभक करें। लगभग 3 से 5 चक्र करें।

लाभ

  • उदर-रोग जैसे मंदाग्नि, अजीर्ण, अपच, क़ब्ज़ इत्यादि को दूर करता है।
  • बवासीर (अर्श) और प्रमेह का नाश करता है।
  • ध्यान के लिए उत्कृष्ट एवं कुण्डली जागरण में सहयोगी।
  • बढ़ी हुई तिल्ली एवं क्षयरोग दूर करता है।
  • पुराना ज्वर नाशक है।

नोट: विशेष जानने के लिए महा मुद्रासन भी देखें।

मुद्रा उपसंहार एवं समस्त लाभ

  • मुद्राओं का अभ्यास सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है। बुढ़ापे और मृत्यु को दूर रखता है।
  • परम गोपनीय और देव-दुर्लभ है। दुष्ट, नास्तिक तथा अयोग्य व्यक्ति को नहीं बताना चाहिए।
  • सच्चे भक्त, उच्च चिंतनशील एवं शांतचित्त वाले को यह ज्ञान देना चाहिए।
  • सर्व व्याधि का नाशक है। नित्य अभ्यास से शील की रक्षा होती है।
  • जठराग्नि तीव्र होती है।
  • बुढ़ापे और मृत्यु पर विजय कर लेता है। उसे अग्नि, जल और वायु का भय नहीं रहता।।
  • कास, श्वास, प्लीहा, कुष्ठ, श्लेष्मा आदि बीस प्रकार के रोग दूर होते हैं।
  • रक्त-शोधक है।
  • वात, पित्त व कफ़ का शमन होता है।

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