Padmasana Method and Benefits In Hindi

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पद्मासन

शाब्दिक अर्थ: पद्य (पद्म) का मतलब कमल।
आकृति: कमल के फूल के समान।
दिशा: उत्तर या पूर्व (आध्यात्मिक कारणों से) ।
विशेष: पहले हम इस आसन को समझ लें। यह सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। इस आसन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। यह शरीर की सभी नाड़ियों (72,000) को शुद्ध करता है। यह आसन आध्यात्मिक साधकों को प्रिय होता है। यह सैकड़ों मंत्रों की सिद्धियों को देने वाला कहा गया है। कुण्डलिनी जागृत करने में यह आसन अद्वितीय है। इस आसन में शुद्ध आत्मा या निर्विकल्प ध्यान लगाने से समस्त पापों का नाश होता है।

विधि

सर्वप्रथम सामने की तरफ़ पैर फैलाकर बैठ जाएँ या सुखासन में बैठ जाएँ फिर बाएँ पैर के पंजे को उठाकर दाहिनी जाँघ पर रखें व दाहिने पैर के पंजे को उठाकर बाएँ पैर की जाँघ पर स्थापित करें। मेरुदण्ड सीधा रखें। घुटने ज़मीन को छूते रहें। बाएँ हाथ को दोनों पैरों के तलवों के ऊपर एवं दाहिने हाथ के पंजे को बाएँ हाथ के पंजों के ऊपर रखें ताकि नाभि से स्पर्श होता रहे यथासंभव जितनी देर रुक सकते हैं, रुकें। श्वास-प्रश्वास लेते रहें। (कहीं-कहीं हाथों को घुटनों के ऊपर भी रखने का विधान है।)
हठयोग प्रदीपिका एवं घेरण्ड संहितानुसार पद्मासन को भिन्न तरीके से परिभाषित किया गया है।
वामोरूपरि दक्षिणं हि चरणं संस्थाप्य वामं तथा,
दक्षोपरि पश्चिमेन विधिना धृत्वा कराभ्यां दृढम्॥
अङ्गुष्ठौ हृदये निधाय चिबुकं नासाग्रमालोकयेत् ,
एतद्व्याधिविकारनाशनकरं पद्मासनं प्रोच्यते।। (घे.स.2/9)
अर्थ: बाईं जंघा पर दाहिने पैर का पंजा और दाहिनी जंघा पर बाएँ पैर का पंजा रखकर विपरीत विधि से हाथों को पृष्ठभाग पर ले जाएँ और बाएँ हाथ से बाएँ पैर का अँगूठा और दाहिने हाथ से दाहिने पैर के अँगूठे को दृढ़तापूर्वक पकड़कर ठोड़ी (चिबुक) को हृदय के ऊपर कंठकूप पर रखकर दृष्टि को नासिका के अग्रभाग पर स्थिर करें। सभी रोगों का नाशक यह आसन पद्मासन कहलाता है।

टिप्पणी

  • यहाँ पर महर्षि घेरण्ड ने एवं हठयोग प्रदीपिका में बद्धपद्मासन को ही विशिष्ठ रूप से पद्मासन ही कहा है। बद्धपद्मासन देखें।
  • घेरण्ड संहिता में अध्याय दो के 44.45 नं. श्लोक में जिस योगासन की व्याख्या की है वह भी पद्मासन जैसा ही है।

व्याख्या: सबसे पहले दोनों पैरों को सामने की तरफ़ फैलाएँ फिर बाएँ पैर को दाहिनी जंघा पर एवं दाहिने पैर को बाईं जंघा पर स्थिर करें। पैरों के तलवे आकाश की तरफ़ करें। एड़ियाँ उदर प्रदेश के अग्रभाग से स्पर्श करें और दोनों घुटने ज़मीन को स्पर्श करते रहें। पीठ एवं सिर सीधे तने हुए हों अब अपने हाथों को पृष्ठ भाग से विपरीत विधि से बाएँ हाथ से बाएँ पैर के अँगूठे को एवं दाहिने हाथ से दाहिने पैर के अँगूठे को पकड़े एवं ठोड़ी (चिबुक) को हृदय के ऊपर स्थित कंठकूप से लगाएँ अर्थात जालंधर बंध लगाते हुए नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि स्थिर करें।
यह सभी रोगों का नाश करने वाला पद्मासन कहलाता है।
मत्स्येंद्रनाथ के अनुसार: दोनों पैरों को सामने की तरफ़ फैलाकर बाएँ पैर को दाहिने पैर की जंघा पर एवं दाहिने पैर को बाएँ पैर की जंघा पर स्थापित करें। जंघाओं के मध्य दोनों हाथों को सीधे रखकर नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि स्थिर करें एवं दाढ़ की जड़ पर जिह्वा को स्तंभित करें और ठोड़ी (चिबुक) को कंठकूप पर स्थापित करें फिर वायु को धीरे-धीरे ऊपर उठाएँ अर्थात मूलबंध लगाएँ। यह आसन क्रिया सभी रोगों का नाश करने वाली है। योगीजनों ने इसे पद्मासन कहा है।
योगकुण्डल्युपनिषद् के अनुसार:
ऊर्वोपरि चेदद्यत्ते उभे पादतले यथा।
पद्मासनं भवेदेतत्सर्वपाप प्रणाशनम्।।
अर्थ: दोनों जाँघों पर एक-दूसरे के पैर के तलुओं को सीधे रखने से पद्मासन होता है जो सब पापों को नाश करने वाला है।
हठयोग प्रदीपिका में लिखा है कि:-
कृत्वासंपुटितौ करौ दृढ़तरं बद्ध्वा तु पद्यमासनं,
गाढं वक्षसि सन्निधाय चिबुकं ध्यायंश्च तच्चेतसि।
वारंवारमपानमूर्ध्वमनिलं प्रोत्सारयन्पूरितं,
न्यंचन्प्राणमुपैति बोधमतुलं शक्तिप्रभावान्नरः।।
व्याख्या: हठयोग के ग्रंथकार का कहना है कि दोनों हाथों को संपुटित करके गोदी में स्थित करके दृढ़रीति से पद्मासन लगाएँ और ठोड़ी को मज़बूती से वक्षःस्थल के समीप स्थिर करें अर्थात् जालंधर बंध को करके ब्रह्म का चिंतन करें अब गुदा को बार-बार सिकोड़े और अपान को ऊपर उठाएँ अर्थात मूलबंध करके सुषुम्ना के मार्ग से अपान को ऊपर चढ़ाते हुए पूरक प्राणायाम से प्राणवायु को नीचे करें, अर्थात प्राण और अपान को एक करके साधक कुण्डलिनी जाग्रत कर असीमित ज्ञान का धारी हो जाता है।
ध्यान: समस्त चक्रों का ध्यान करें और यह भावना रखें कि आपके समस्त चक्र जागृत हो रहे हैं, आत्मा शुद्ध होती जा रही है; अथवा गुरु के द्वारा दिए मंत्र का जाप करें।

सावधानियाँ

  • क्षमता से अधिक देर तक ज़बर्दस्ती न बैठे।
  • घुटनों में दर्द हो तो पहले पवनमुक्तासन संबंधी क्रियाओं को करें।
  • साइटिका और घुटनों के तीव्र दर्द से पीड़ित व्यक्ति यथासंभव क्रमशः करें।
  • जब भी आसन लगाएँ मेरुदण्ड, गर्दन व सिर सीधे रखकर ही अभ्यास करें।
  • पैरों की स्थिति बदलकर अवश्य करें ताकि शरीर के अंगो का विकास समान रूप से हो।

लाभ

  • इस आसन से प्राण वायु अपान से मिलती है।
  • यह आसन शरीर के सभी स्नायुतंत्र खोलता है।
  • प्राण सुषुम्ना से प्रवाहित होने लगते हैं जिससे जीवनदायिनी शक्ति प्राप्त होती है।
  • काम-विकार को नाश कर कामशक्ति यथावत् करता है।
  • चेतना ऊर्ध्वमुखी बनाता है।
  • चेहरे की कांति प्रदीप्त होती है।
  • शरीर के सभी रोगों को क्रमशः क्षीण करता हुआ साधक को निरोगी बनाता है।
  • शांति प्रदान कर मन की चंचलता को दूर करता है।
  • इस आसन को नियमित करते रहने से पापकर्मों का क्रमशः नाश होता जाता है।
  • कुण्डलिनी जागरण में विशेष सहायक।
  • 10-15 मिनिट तक बैठकर ध्यान करने से अपने स्थान से हटी हुई नाभि ठीक हो जाती है।
  • नियमित अभ्यास से साधक की 72,000 नाड़ियाँ प्रासुक (शुद्ध) होती हैं।
  • इस आसन को करने पर पैरों में रक्त संचार कम हो जाता है जिस कारण उदर एवं कटि प्रदेश में रक्त की मात्रा बढ़ जाती है। इस प्रकार इन दोनों अंगों से संबंधित सभी रोगों में लाभ मिलने लगता है।

नोट: कुछ योग शिक्षक इस आसन को कमलासन, श्री आसन, आदिआसन ब्रह्मा आसन और मुक्तपद्मासन भी कहते हैं।
प्रकारांतर: पद्मासन की अवस्था में ही पेट के बल लेट जाए और हाथों को पीठ के पीछे ले जाकर नमस्कार की मुद्रा बना लें, तो यह अवस्था गुप्त पद्मासन कहलाती है। कुछ योग शिक्षक गुप्त पद्मासन को पतंग आसन भी कहते हैं।

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