Siddhasana, Vijayasana Method and Benefits In Hindi

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सिद्धासन/विजयासन

आकृति: पद्मासन से मिलती-जुलती, सिद्धि प्राप्ति में सहायक, इसलिए सिद्धासन कहलाता है।
ध्यान: समस्त चक्रों पर।

विधि

सुखासन में बैठ जाएँ। बाएँ पैर के तलवे को दाहिनी जाँध से सटाकर ऐसे लगाएँ ताकि एड़ी आपके गुदा और अंडकोश के बीच के भाग को छूने लगे। अब दाहिने पैर की एड़ी को जननेंद्रिय और वस्ति की हड्डी के बीच दबाव डालते हुए रखें। दाहिने पैर की अँगुलियों को बाईं पिंडली और जाँघ के बीच हँसाएँ। ध्यान रहे घुटने ज़मीन को छूते रहें। शरीर एकदम सीधा रखें। हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा की स्थिति में रखें। ठोड़ी को हृदय प्रदेश के ऊपर कंठकूप में स्थिर करें। दृष्टि भौहों के मध्य रखें एवं तनाव रहित होकर बैठे। पैरों की स्थिति बदलकर यही अभ्यास करें।
दिशा: पूर्व या उत्तर (आध्यात्मिक लाभ हेतु) ।
समय: यथासंभव।
श्वासक्रम: प्राणायाम के साथ/अनुकूलतानुसार।
मंत्र: गुरु द्वारा प्रदत्त या अपने इष्ट देव या ॐ नमः सिद्धेभ्यः का जाप करें।
टिप्पणी: सिद्धासन और पद्मासन के लाभ लगभग एक जैसे ही हैं। चेतना को ऊर्ध्वमुखी बनाने के लिए यह आसन उपयुक्त है अतः सभी साधकों, ब्रह्मचारियों को यह आसन अवश्य करना चाहिए। प्राणायाम और ध्यान के लिए यह आसन ज़रूर करना चाहिए।

लाभ

इस आसन से दृढ़ इच्छा शक्ति का विकास होता है। मेरुदण्ड स्थिर व दृढ़ होता है। गुदा संबंधी रोग तथा काम-विकार का नाश होता है। इस आसन को 48 मिनट तक प्रतिदिन करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। बुढ़ापे में भी कमर नहीं झुकती। इस आसन में बैठकर त्राटक करने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है। उदर प्रदेश को भरपूर लाभ मिलता है।
सावधानियाँ: साइटिका, तीव्र कमर दर्द या घुटनों की तीव्रवेदना में क्रमशः धैर्यपूर्वक अभ्यास करें।

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