बुखार के प्रकार [ Types Of Fever In Hindi ]

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शरीर का ताप बढ़ जाने (97-98 डिग्री से अधिक) को ही लोग साधारणत: ज्वर (बुखार) या ‘Fever’ कहते हैं। शरीर के किसी अंग में (या यंत्र में) प्रदाह या किसी तरह का विष रक्त के साथ मिल जाने पर ज्वर की उत्पत्ति हो जाती है। जो ज्वर एक बार छूटकर फिर आ जाता है, उसे ‘सविराम’ या ‘विषम जवर’ कहते हैं। जो ज्वर सदैव बना रहता है, एकदम से पीछा नहीं छोड़ता, उसे ‘अविराम ज्वर’ या ‘एक ज्वर’ कहते हैं। जो ज्वर घटे नहीं और बढ़ जाए, उसे ‘स्वल्प-विषम ज्वर’ कहते हैं। सामान्य ज्वर, सर्दी का ज्वर, मलेरिया ज्वर आदि जो ज्वर लोगों को प्राय: हुआ करते हैं, उनकी प्रकृति आगे दिए जाने वाले ज्वरों में किसी न किसी से मिलती है। ज्वर कई प्रकार का होता है:-

(1) साधारण या सामान्य-ज्वर (Normal Fever) – यह ज्वर ठंड लग जाने से, धूप में घूमने से, पानी में भीग जाने से, अधिक मात्रा में खाने या पेट की गड़बड़ी से, अधिक परिश्रम करने से या भय आदि मानसिक कारणों से होता है।

(2) स्वल्पविराम-ज्वर (Remittent Fever) – ऐसा ज्वर जो टाइफॉयड की तरह चढ़ता-उतरता रहता है या बिल्कुल नहीं उतरता। इसे ‘अविराम-ज्वर’ भी कहते हैं।

(3) टाइफॉयड-ज्वर (Typhoid Fever) – इसको ‘आंत्रिक’ या ‘मियादी बुखार’ भी कहते हैं। यह ज्वर गर्मी और शरद ऋतु में ही अधिक होता है।

(4) मोह-ज्वर (Typhus Fever) – यह ज्वर एकाएक आ जाता है, कितनी ही बार तो कंपकंपी देकर आता है और ज्वर का ताप क्रमश: बढ़ता-बढ़ता तीन दिनों में खूब ऊंचा चढ़ जाता है।

(5) मलेरिया-ज्वर (Malarial Fever) – एक प्रकार का जीवाणु इस ज्वर की उत्पत्ति का कारण है। यह रक्त में मिलकर रक्त-कण को दूषित बना देता है।

(6) डेंगू ज्वर (Dengue Fever) – इसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं। इससे शरीर में इतना तेज दर्द होता है कि रोगी बेचैन हो जाता है।

(7) खसरा का ज्वर (Measles Fever) – खसरा ज्वर एक संक्रामक रोग है। यह एक से दूसरे को भी हो सकता है। श्वास से निकली वायु से यह रोग फैलता है।

(8) सूतिका-ज्वर (Puerperal Fever ) – ऐसा ज्वर जो स्त्री को प्रसूति के बाद सफाई आदि न होने की वजह से हो जाता है।

(9) आरक्त-ज्वर (Scarlet Fever) – यह ज्वर प्राय: बालकों को ही अधिक होता है और जीवन में दोबारा कभी नहीं होता।

(10) यक्ष्मा का ज्वर (Phthisis Fever) – यह ज्वर दिन-रात बना रहता है और रोगी को बहुत परेशान करता है।

(11) सर्दी का ज्वर (Catarrhal Fever) – ओस या सर्दी लगना, पानी में देर तक भीगना, पेट का गरम होना, एकाएक सर्दी से गर्मी में पहुंचना आदि कारणों से यह ज्वर हो जाता है।

(12) माल्टा-ज्वर (Malta Fever) – एक प्रकार का जीवाणु होता है, जो शरीर में प्रवेश करके इस ज्वर की उत्पत्ति कर देता है।

(13) पौन:पुनिक-ज्वर (Relapsing Fever) – यह ज्वर भी एक प्रकार के जीवाणु से उत्पन्न होता है। इसमें जाड़ा लगकर तेजी से ज्वर चढ़ता है।

(14) पीत-ज्वर (Yellow Fever) – यह ज्वर एक प्रकार का संक्रामक रोग है। प्राय: गरम देशों में इस ज्वर के शिकार अधिक होते हैं।

(15) ग्रंथिशोथ-ज्वर (Glandular Fever) – यह ज्वर एकाएक आरंभ होता है। प्रायः किसी-किसी बच्चे को बार-बार हुआ करता है।

(16) दमदम-ज्वर (Kala azar fever) – इसमें धीमा अविराम प्रकार का ज्वर होने पर भी ज्वर 24 घंटों में दो बार चढ़ता है।

(17) वात-ज्वर (Rheumatism Fever) – शरीर में पोषण-क्रिया में गड़बड़ी होने से जीवनी-शक्ति कमजोर पड़ जाती है, जिस कारण दर्द के साथ ज्वर चढ़ता है।

(18) मसूरिका-ज्वर (Small Pox Fever) – यह भी ज्वर का कारक रोग है।

(19) जल-चेचक ज्वर (Chicken Pox Fever) – यह चेचक की भांति संक्रामक रोग नहीं है। इसमें प्राय: हल्का ज्वर चढ़ा करता है।

(20) मस्तिष्क-कशेरुका-ज्वर (Cerebrospinal fever) – यह संक्रामक जीवाणु से उत्पन्न हुआ तरुण (नया) ज्वर है। स्वास्थ्य के नियमों का पालन न करने से यह होता है।

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