Vajroli Mudra Method and Benefits In Hindi

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वज्रोली मुद्रा

विधि

रबर की एक विशेष नली जिसे केथेटर कहते हैं, वह 4-5 नम्बर की डेढ़ फीट के करीब लें। यह नली मूत्र नलिका में प्रवेश कराई जाती है। उस रबर की नली के अग्रभाग में चार-पाँच इंच तक शुद्ध घी या बादाम का तेल लगाकर धीरे-धीरे मूत्र नलिका के छिद्र में डालें। पीड़ा होने पर निकाल लें और क्रमशः अभ्यास करें एवं अभ्यास हो जाने पर इससे थोड़ी मोटी नलिका 7-8 नम्बर वाली डालने का अभ्यास करें। अभ्यास हो जाने पर नौलि क्रिया से आँतों को उठाकर मूलाधार को सिकोड़कर मूत्र-प्रणाली का संकुचन करते हुए पहले वायु का आकर्षण करें। तत्पश्चात् जल, दूध, (शुद्ध किया हुआ संस्कारित पारा) का आकर्षण करें। बाद में ये द्रव्य मूत्र त्यागते समय बाहर आ जाते हैं। इसका अभ्यास रबर नली के बाद चाँदी की नलिका से करें।
विशेष: किसी योग्य गुरु के निर्देशन में ही करें।

लाभ

  • ऊर्जा ऊर्ध्वमुखी होती है। अतः शरीर कांतिवान बनता है।
  • ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है।
  • मानसिक शांति, आनंद व आध्यात्मिक लाभ मिलता है।
  • मृत्यु पर्यन्त साधक युवा बना रहता है।
  • साधक के शरीर से सुगंध आने लगती है।
  • यह मुद्रा साधक को अमृत प्रदान करती हुई विश्व का महान योगी बनाती है।

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