हैजा का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Cholera ]

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ग्रीष्म ऋतु में अधिक समय तक बाहर रहने, कटे हुए फल खाने, इधर-उधर का पानी पीने या बोतल बंद शीतल पेय पीने पर अधिकांश लोग विशूचिका अर्थात हैजे का शिकार हो जाते हैं। ग्रीष्म ऋतु में तो हैजा संक्रामक रोग के साथ फैलता है। हैजा विशेष प्रकार के जीवाणुओं के संक्रमण से होता है। इन जीवाणुओं को “कोलरावाइब्रिओ” कहते हैं। रोगी के पेट में पहुंचते ही इन जीवाणुओं के विषक्रमण से वमन और दस्त प्रारंभ हो जाते हैं। वमन और दस्त ही विशुचिका (हैजा) की सबसे बड़ी पहचान है। इसके साथ पेट में ऐंठन और बहुत बेचैनी होती है।

नक्सवोमिका 30 — वमन, औंकाई, अतिसार, पेट में काटने, खोंचा मारने की तरह दर्द होता है, मल परिमाण में कम पर अधिक बार होता है। मल पतला, हरा और अधिक बदबूदार होता है।

इपिकाक 30 — मल हरे रंग का, फेन मिला, आंव मिला, लार की तरह लसदार, पेट में खूब मरोड़ और ऐंठन की तरह दर्द होता है। पतले दस्तों के साथ वमन या मिचली अधिक रहती है।

पल्सेटिला 3x — पेट में वायु इकट्ठी रहती है, खाया हुआ पदार्थ गले में चढ़ता है। गड़गड़ के साथ पेट में दर्द होता है। वमन में खाया हुआ पदार्थ निकल जाता है, बेचैनी बनी रहती है।

आइरिस वर्स 30 — पित्त मिला वमन, मिचली और वमन के बाद गला, जिल्ला, गलनली और पेट से लेकर मुंह तक आग की तरह की जलन हुआ करती है। अकड़न तथा जलन भी बहुत रहती है।

पोडोफाइलम 200 — दस्त परिमाण में बहुत अधिक और वेग से निकलता है; यह पीला, हरा, बादामी, लाल लसदार और आंव मिला रहता है। मल और वमन में बहुत अधिक बदबू होती है।

बेलाडोना 30 — मल-त्याग के समय रोगी कांखता है, वेग देता है, मिचली हुआ करती है, औंकाई आती है, वमन भी होता है। माथा गरम, हाथ-पैर ठंडे रहते हैं, रोगी छटपटाता है, चौंक उठता है, प्यास रहती है, मुंह तमतमाया रहता है, नींद में भी बहुत कराहता है।

एकोनाइट 3x — हैजा-रोग में बहुत वेचैनी, प्यास आंव और रक्त मिला हरे रंग का दस्त, पानी की तरह पतला मल होता है, खाया हुआ सब वमन में निकल जाता है। पेट में भयंकर दर्द होता है।

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