Paryankasana Method and Benefits In Hindi
पर्यंकासन
शाब्दिक अर्थ: पर्यंक का अर्थ बिस्तर है।
विधि
वज्रासन में बैठे। पीठ की तरफ़ झुकें। इस आसन में केवल सिर के ऊर्ध्वभाग को ज़मीन पर स्पर्श कराएँ। पीठ और गर्दन को ऊपर उठाएँ जैसे पुल का निर्माण किया हो। हाथों को सिर के पास ले जाकर आपस में बाँध लें। अर्थात दाहिने हाथ से बाएँ हाथ की कोहनी और बाएँ हाथ से दाहिने हाथ की कोहनी पकड़े (चित्र देखें) । स्वाभाविक रूप से श्वास लें। लगभग 50 से 60 सेकंड रुकें। हाथों को छोड़ दें और वज्रासन में आने के बाद पैरों को एक-एक करके सीधा कर लें। अब शवासन में विश्राम करें।
समय: अभ्यस्त होने के बाद 50 सेकेण्ड से लेकर 3 मिनट तक । 2 से 3 बार।
श्वासक्रम: श्वास छोड़ते हुए आसन की स्थिति निर्मित करें। पूर्ण आसन पर धीरे-धीरे गहरा श्वास-प्रश्वास करें। मूल अवस्था में लौटते समय श्वास लें।
लाभ
- वज्रासन, सुप्त वज्रासन और मत्स्यासन के सभी लाभ मिलते हैं।
- पृष्ठीय संस्थान पूर्णतः फैलते हैं, जिससे फुफ्फुस अच्छी तरह फैल जाते हैं। श्वास रोगी को लाभ मिलता है।
- गर्दन के स्नायु तन जाते हैं और गल-ग्रंथि उत्तेजित हो जाती है। इस कारण यह ठीक काम करती है।
सावधानियाँ: वे सभी सावधानियाँ रखें जो सुप्त वज्रासन के लिए हैं।
नोट: कुछ योग शिक्षक इस आसन को सुप्त वज्रासन के समान मानते हैं एवं पर्यंकासन के द्वितीय प्रकार का वर्णन आगे पृष्ठ पर दिया गया है।
विशेष: मरण्य कण्डिका नामक शास्त्र में पद्मासन को पर्यंकासन कहा गया है। यह शास्त्र सन 0940 (लगभग 1070 वर्ष पुराना) में लिखा गया था जो कि वर्तमान में भी उपलब्ध है।
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