Greeva Shakti Vikasak Kriya Method and Benefits In Hindi

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ग्रीवा शक्ति विकासक क्रिया

प्रथम विधि

  • समावस्था में खड़े रहें। श्वास खींचते हुए गर्दन को बाएँ कंधे की सीध में ले जाएँ, बिना रूके गर्दन को दाईं ओर लाएँ, श्वास छोड़े अब गर्दन दाएँ कंधे की सीध में रखें। क्रिया को इसी तरह दस बार दोहराएँ।
  • श्वास लेकर गर्दन को नीचे से ऊपर की ओर ले जाएं। ऊपर की ओर देखें, श्वास छोड़कर गर्दन को नीचे की ओर वापस लाएं।

लाभ

ग्रीवा के समस्त दोष दूर होते हैं। गर्दन का मोटापा कम होता है टान्सिल्स, कण्ठमाला आदि रोग ठीक होते हैं। स्वर मधुर व सुरीला बनता है। हकलाहट और तुतलापन जैसे विकार ठीक होते हैं। गर्दन पुष्ट और मजबूत बनती है।

द्वितीय विधि

समावस्था में खड़े रहें। ठुड्डी कण्ठकूप में लगायें। आँखें बन्द न करें। श्वास खींचकर रोकें, सिर को बाएँ कन्धे की ओर से चक्राकर घुमाते हुए सामने लाएँ, श्वास छोड़े, पुनः श्वास भरें। चक्राकर में दाईं ओर से बाईं ओर सिर वापस लायें। पूर्ण चक्र होने पर श्वास छोड़े। प्रयास करें कि दोनों समय गर्दन को इतना झुकाएँ कि कान, कंधे से स्पर्श करने लगे। कंधो को उठाएँ। क्रिया को तीन बार करें।

लाभ

ग्रीवा के समस्त दोष दूर होते हैं। गर्दन का मोटापा कम होता है टान्सिल्स, कण्ठमाला आदि रोग ठीक होते हैं। स्वर मधुर व सुरीला बनता है। हकलाहट और तुतलापन जैसे विकार ठीक होते हैं। गर्दन पुष्ट और मजबूत बनती है।

तृतीय विधि

समावस्था में खड़े रहें। श्वास छोड़कर पेट पिचकायें, फिर श्वास खींचकर पेट फुलाते हुए गले की नसे तानें। क्रिया को 10 बार करें।

लाभ

ग्रीवा के समस्त दोष दूर होते हैं। गर्दन का मोटापा कम होता है। टान्सिल्स, कण्ठमाला आदि रोग ठीक होते हैं। स्वर मधुर व सुरीला बनता है। हकलाहट और तुतलापन जैसे विकार ठीक होते हैं। गर्दन पुष्ट और मजबूत बनती है।

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