Vakshasthal Shakti Vikasak Kriya Method and Benefits In Hindi

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वक्षःस्थल शक्ति विकासक क्रिया

प्रथम विधि

समावस्था में खड़े रहें। करतल भाग अन्दर की ओर रखते हुए हाथों को जंघा के सामने पर स्थापित करें। श्वास लेकर दोनों हाथों को ऊपर ले जाएँ। हाथों के मध्य सिर को रखें और ऊपर की ओर देखें। वक्षःस्थल को पूर्ण रुप से पीछे झुकाकर उसी अवस्था में कुछ देर रुकें। फिर श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे पहली अवस्था में आ जाएँ, यह क्रिया तीन बार करें।

द्वितीय विधि

समावस्था में खड़े रहें। हाथों को जंघा के बाजू में रखें। श्वास को अन्दर लेते हुए दोनों हाथ को बाजू से पीछे की ओर पीठ की तरफ़ तानें। ऊपर की ओर देखें। सीना फुलाएँ। श्वास छोड़कर पूर्व अवस्था में आएँ। इस विधि को तीन बार करें।

उपरोक्त दोनों क्रियाओं के लाभ

फेफड़े पुष्ट होकर उनके रोग नष्ट होते हैं। हृदय रोग दूर होता है। टी.बी., दमा, कफ़, खाँसी आदि रोग नष्ट होते हैं। रीढ़ की हड्डी का टेढ़ापन दूर होता है। सीना चौड़ा व पुष्ट बनता है।

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