Hatha Yoga- (Shatkarma) Method and Benefits In Hindi

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हठ योग- (षट्कर्म)

एकमात्र भारत ही ऐसा देश है जहाँ ऋषि-मुनियों ने आत्म तत्व की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार की विधियाँ बताई हैं। व्यक्ति अपने-अपने कर्मानुसार जन्म लेता है व मृत्यु को प्राप्त होता है। यही कारण है कि उसी कर्म के अधीन मनुष्य के भाव एवं विचारों में भिन्नता होती है। योगाचायो’ को यह दर्शन पूर्व से ही ज्ञात था। उनका मानना था कि यदि हम व्यक्ति को शिवात्मा का एक ही मार्ग बताएँगे तो शायद सभी को एक साथ समझ में नहीं आएगा। क्योंकि एक तो विचार नहीं मिलेंगें और दूसरा मनुष्य की शारीरिक अवस्थाएँ भी अलग-अलग होती हैं। दुनिया का कोई काम करना हो तो उसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। “अच्छा स्वास्थ्य।’ इस सम्बंध में एक कहावत भी प्रचलित है, “पहला सुख निरोगी काया।” यह पंक्ति बहुत सोच-समझकर लिखी गई है। यही कारण है कि उन परम उपकारी आत्माओं ने हमें योग दर्शन दिया जिससे हम शारीरिक रूप से स्वस्थ बनें और वही क्रियात्मक अभ्यास हमारे जीवन को सुंदर बनाने में सहयोग करें। अंततः हम उस निजात्म तत्व का दर्शन करें जिससे हमारा जन्म-मरण चक्र समाप्त हो जाए और हम कैवल्य को प्राप्त कर सकें।
इसी क्रम को उन्होंने यथावत् रखते हुए हमें योग की कई कलाएँ सिखाईं। उसी कला में से एक कला का नाम है – मलशोधन षट्कर्म।
महर्षि घेरण्ड लिखते हैं कि –
षट्कर्मणा शोधनं च आसनेन भवेद्दृढम् ।
मुद्रया स्थिरता चैव प्रत्याहारेण धीरता॥
प्राणायामाल्लाघवं च ध्यानात्प्रत्यक्षमात्मनः।
समाधिना निर्लिप्तं च मुक्तिरेव न संशयः॥
(घे.सं. 1/10-11)
अर्थ: षट्कर्मों से शरीर की शुद्धि होती है। आसनों से शरीर में दृढ़ता आती है। मुद्राओं से स्थिरता आती है और प्रत्याहार से धीरता बढ़ती है। प्राणायाम से शरीर में स्फूर्ति और हल्कापन आता है। ध्यान द्वारा आत्मा प्रत्यक्ष होती है तथा निर्विकल्प समाधि के द्वारा बिना संशय के मुक्ति होती है।
हठयोग में षट्कर्म के बारे में लिखा है कि:-
मेदः श्रेष्माधिकः पूर्व षट्कर्माणि समाचरेत्।
अन्यस्तु नाचरेत्तानि दोषाणां समभावतः॥
धौतिर्वस्तिस्तथा नेतिस्त्राटकं नौलिकं तथा।।
कपालभातिश्चैतानि षट् कर्माणि प्रचक्षते॥
कर्मषटमिदं गोप्यं घटशोधनकारकम्।
विचित्रगुण संधायि पूज्यते योगिपुंगवैः॥
(ह.यो.प्र. 2/21-23)
अर्थ: आचार्य कहते हैं जिस पुरुष में मेद और श्लेष्मा आदि की अधिकता हो उसे पहले षट्कर्म करना चाहिए। अर्थात् जिनको कफ़ की अधिकता हो, जुकाम हो, (नाक-मुँह से कफ़ निकलता हो) स्थूलता आदि से पीड़ित हों, उन्हें शरीर शुद्धि हेतु मलशोधन षट्कर्म करने चाहिए। लेकिन जिनमें स्थूलता, श्लेष्मा आदि न हो उन्हें षट्कर्म की आवश्यकता नहीं होती है। मलशोधन षट्कर्मों के नाम निम्नलिखित है।

  • धौति
  • वस्ति
  • नेति
  • त्राटक
  • नौलि
  • कपाल-भाति

विद्वान आचार्यों ने ये षट्कर्म योग मार्ग में बताए हैं। ये षट्कर्म गोपनीय तथा शरीर को शुद्ध करने वाले और विचित्र गुण को उपजाने वाले हैं। योगीजन इनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि यदि ये गुप्त न रखे जाएँ तो अन्य लोग भी इसको करेंगे जिससे योगीजनों की पूज्यता न रह सकेगी। योगियों को उत्कृष्ट बनाना ही षट्कर्म का उद्देश्य है।
एवं घेरण्डसंहिता में लिखा है कि:-
धौतिर्वस्तिस्तथा नेतिः लौलिकी त्राटकं तथा।
कपालभातिश्चैतानि षट्कर्माणि समाचरेत॥ (घे.स. 1/2)
अर्थ: धौति, वस्ति, नेति, लौलिकी (नौली) , त्राटक और कपाल-भाति इन षट् कर्मों को शरीर शुद्धि हेतु करें।

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