Human Anatomy And Physiology In Hindi

401

मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान

मानव शरीर एक अद्भुत रचना, ईश्वर की अनमोल देन एवं अच्छे कर्मों का उपहार है।
इस अध्याय में मानव शरीर और उससे जुड़ी क्रियाओं का अध्ययन किया जाएगा जो कि आपको योग से सम्बंधित आसनों में सहायक होंगी।
योगासनों का विशेष प्रभाव मांसपेशियों, ग्रंथियों, मेरुदण्ड आदि में प्रथम रूप से देखा गया है। अतः इस विलक्षण आकृति को समझने के लिए इस अध्याय में संक्षिप्त लेख लिखा गया है।

शरीर रचना विज्ञान
(Anatomy)

मानव शरीर अनेक छोटी-छोटी कोशिकाओं (cells) से मिलकर बना है। ये कोशिकाएँ आपस में जुड़कर ऊतक (tissue) बनाते हैं और ऊतक पेशियों (muscles) का निर्माण करते हैं। इस तरह अलग-अलग पेशियाँ (muscles) मिलकर सभी अन्य ग्रंथियाँ और अवयव (organs) बनाते हैं। इस तरह हम शरीर को छह हिस्सों में बाँटकर उसका अलग से अध्ययन कर सकते हैं।
जैसे- सिर (head) , गला (neck) , हाथ (upper limbs) , पैर (lower limb) , पेट (abdomen) , तथा छाती (thorax) ।

सिर (Head)

सिर के कंकाल को Skull कहते हैं। ये बहुत सारी हड्डियों से जुड़कर बना होता है। Skull में दो हड्डियों का जोड़ होता है, एक Cranium दूसरी Mandible (जबड़ा) । Cranium के अंदर बने खोखले हिस्से को brainbox कहते हैं, जिसमें मस्तिष्क (brain) होता है।

गला (Neck)

गर्दन हमारे सिर को धड़ से जोड़ती है। इसके अंदर बहुत सारे अंग होते हैं। जैसे, चुल्लिका ग्रंथि (Thyroid gland) , उप-चुल्लिका ग्रंथि (Parathyroid gland) , Thymus gland, धमनियाँ (Arteries) , शिराएँ (Veins) , नसें (Nerves) , Trachea, Oesophagus आदि।

बाहु (Upper limbs)

हमारे हाथ की बनावट इस तरह से है।

  • कंधे – Shoulders
  • ऊपरी बाहु – Arm
  • अग्रबाहु – Forearm
  • हथेली – Palm

कंधे को तीन भागों में विभाजित किया जाता है –

  • सीना (Pectoral region)
  • काँख (Axillary region)
  • स्केपुला (Scapula)

पैर (Lowerlimbs)

आम तौर पर सभी जानवरों द्वारा हाथों और पैरों का इस्तेमाल चलने के लिए किया जाता है। इसके विपरीत मनुष्य चलने-फिरने के लिए सिर्फ अपने पैरों का ही इस्तेमाल करता है।
पैर की बनावट में मुख्य रूप से निम्नलिखित आकृतियाँ होती हैं।

  • Pelvic girdle – Hipbone+Sacrum+Coccyx
  • Femur
  • Tibia & Fibula
  • Foot-tarsal & metatarsals

पेट (Abdomen)

पेट शरीर का एक बहुत बड़ा व महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो बहुत सारे अंगों से मिलकर बना है।
जैसे – यकृत (liver) , अग्नाशय या क्लोम-ग्रंथि (pancreas) , आमाशय । (stomach) , ऑतें (intestine-small and large) , तिल्ली (spleen) , महिलाओं में गर्भाशय और रजपिंड (uterus &ovaries) होते हैं और पुरुष में वीर्य पिंड (testis) होते हैं।

वक्षीय पिंजरा (Thorax)

यह भाग गले के नीचे से शुरू होता है। और xiphoid process of the sternum तक रहता है। Thorax में हड्डियों का एक ढाँचा होता है जो कि पसलियों (ribs) द्वारा बना होता है। जो सामने की तरफ़ sternum से जुड़ा होता है और पीछे की तरफ़ vertebral column से जुड़ा होता है। इसके भीतर हृदय (heart) और फुफ्फुस (lungs) होते हैं जो कि श्वसन क्रिया और रक्तसंचार नियंत्रित करते हैं।

खोपड़ी के वायु विवर (Air sinuses in the Skull)

खोपड़ी की हड्डियों में कुछ cavities पाई जाती है, जिनमें वायु भरी होती है। इन्हें वायु विवर (Air sinuses) कहा जाता है।
ये ज़्यादातर frontal, sphenoid, ethmoidal, maxillary स्थान पर पाए जाते हैं। ये सभी नाक पर खुलते हैं। इनसे स्वर में गूंज उत्पन्न होती है, तथा यह चेहरे तथा कपाल का भार कम करते हैं।

वायु विवर शोथ या साइनुसाइटिस (Sinusitis)

नासिका का संक्रमण वायु विवरों में पहुँचता है जिससे यह भी संक्रमित हो जाती है। और इनमें सूजन (inflammation) हो जाता है। इससे इनमें शोथ inflammation उत्पन्न हो जाता है जिसे वायु विवर शोथ या साइनुसाइटिस कहा जाता है। इस रोग में सिर में विशेष रूप से उस स्थान पर दर्द होता है जहाँ पर कोई वायु विवर रोग हुआ होता है तथा जुकाम बना रहता है। रोग के पुराना पड़ जाने पर एक नासा रंध्र से स्राव होने लगता है। जिससे कभी-कभी बदबू भी आती है। जिसे Chronic Sinusitis कहते हैं।

संधि संस्थान (Articular System)

दो यो दो से अधिक अस्थियों के आपस में मिलने के स्थान को जोड़ (joint) कहते हैं। संधियों के अध्ययन को संधि विज्ञान (arthrology) कहा जाता है। संधियाँ अस्थियों (bones) , उपास्थियों (cartilages) , स्नायुओं (ligaments) , तंतुमय ऊतक (fibrous tissue) एवं श्लेषक कला (synovial membranes) की बनी होती हैं। संधियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है:

  • तंतुमय संधियाँ (fibrous joints)
  • उपास्थि संधियाँ (cartilaginous joints)
  • श्लेषक संधियाँ (synovial joints)

वात रोग (Gout)

इस रोग में रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बहुत बढ़ी हुई होती है तथा संधियों में सोडियम यूरेट के रवे जमा हो जाते हैं जिससे संधि शोथ हो जाता है।
सामान्यतः पैर की अँगुलियों और अँगूठे से यह रोग प्रारम्भ होता है। पैरों में सूजन, बुख़ार, हाथ-पैरों में दर्द होता है तथा पसीना आता है।

Comments are closed.