Human Physiology In Hindi

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शरीर क्रिया विज्ञान

हमारा शरीर विभिन्न प्रकार के तंत्रों द्वारा संचालित होता है। अलग-अलग क्रिया करने के लिए अलग-अलग तंत्र काम करते हैं। जैसे रक्त का संचारण पूरे शरीर में करने के लिए रक्त-परिसंचरण तंत्र काम करता है। ऐसे ही बाक़ी सभी तंत्र अपने-अपने स्थान पर कार्यरत रहते हैं।
हमारे शरीर द्वारा जितनी भी क्रियाएँ की जाती हैं उन्हें संचालित करने का कार्य यह तंत्र ही करते हैं।
तंत्रों के नाम –

  • परिसंचरण तंत्र – (Circulatory system)
  • लसीका तंत्र – (Lymphaticsystem)
  • जालिका अंतःकला तंत्र – (R.E. system)
  • पोषण तंत्र – (Digestive system)
  • श्वसन तंत्र – (Respiratory system)
  • अंतस्त्रावी तंत्र – (Endocrine system)
  • मूत्र तंत्र – (Urinary system)
  • प्रजनन तंत्र – (Reproductive system)
  • मेरु तंत्रिका तंत्र – (Nervous system)

परिसंचरण तंत्र – (Circulatory system)

इस तंत्र में मुख्य अंग हृदय है जो कि मूलाधार है परिसंचरण तंत्र का। हृदय से रक्तवाहिकाएँ जुड़ी होती हैं जो कि पूरे शरीर में फैली होती हैं और रक्त का संचार करती हैं।
हमारे शरीर में दो प्रकार की रक्तवाहिकाएँ होती हैं:-

  • धमनियाँ (arteries)
  • शिराएँ (veins)

हृदय की स्थिति

हृदय छाती या वक्ष में फेफड़ों के मध्य स्टर्नम के पीछे मीडियास्टीनम में स्थित होता है। इसका बड़ा भाग बाईं ओर होता है।

हृदय चक्र (Cardiac cycle)

हृदय एक पम्प के समान है। सम्पूर्ण शरीर में रक्त परिसंचरण से सम्बंधित क्रियाएँ हृदय के द्वारा की जाती हैं। उन्हें सम्मिलित रूप से हृदय चक्र कहा जाता है। हृदय की क्रिया साइनस अलिन्द नोड से शुरू होती है और पूरे हृदय में से होते हुए निलयों तक पहुँचती है तथा निलय संकुचित होते हैं। अलिन्द (Arterium) और निलय (Ventricle) की क्रिया को दो भागों में विभक्त किया जाता है – प्रकुचन (Systole) तथा अनुशिथिलन (Diastole) । प्रकुचन में हृदय के कोष्ठ सिकुड़ते हैं तथा अनुशिथिलन में रक्त हृदय से बाहर आता है। साथ ही हृदय रक्त से भरकर फूल जाता है।

हृदय ध्वनियाँ (Heart sounds)

निलयों (ventricles) के प्रकुचित होने पर अलिन्द निलय कपाट (arterial ventricular valve) निष्क्रिय रूप से बंद हो जाते हैं। इसके कपाट बंद होते समय जो ध्वनि निकलती है वह प्रथम हृदय ध्वनि (first heart sound) कहलाती है। इसे हम Lubb के समान सुनते हैं। निलयों (ventricles) का संकुचन समाप्त होने पर महाधमनी (aorta) तथा फुफ्फुस कपाट (aorticvalveorsemicircularvalve) जब बंद होते हैं तब द्वितीय हृदय ध्वनि (second heart sound) होती है। इसे हम Dub के समान सुनते हैं। हृदय की यह सम्पूर्ण कार्य प्रणाली धड़कन (Heart Beat) कहलाती है जिससे यह ज्ञात होता है कि हृदय सुचारु रूप से कार्य कर रहा है।

नाड़ी क्या है? (Pulse)

जब धमनियों में दाब की लहर आती है साथ ही हृदय से रक्त बाहर आता है उस समय एक लहर सी महसूस होती है। वह Pulse है। हम Pulse को Radial Artery में ज़्यादातर देखते हैं। वैसे तो हम Pulse को Brachial Artery,Popliteal Artery, Femoral Artery,Dorsalis Pedis Artery में भी देख सकते हैं। नाड़ी की आदर्श गति वयस्कों में सामान्यतः एक मिनिट में 72 बार होना चाहिए तथा नवजात शिशु में 140/min.
हमारे पूरे शरीर में रक्त की मात्रा लगभग 5 लीटर होती है।

रक्तचाप (Blood Pressure)

रक्त-वाहिकाओं (arteries and veins) में परिसंचरित होते समय वाहिकाओं की Walls पर रक्त जितना lateral पाश्र्व दबाव डालता है उसे रक्तचाप या Blood Pressure कहते हैं। रक्तचाप को मापने के लिए स्फिगनोमेनो मीटर का उपयोग किया जाता है। रक्तचाप के बढ़ने को हम Hypertension के नाम से जानते हैं और रक्तचाप के कम होने को Hypotension से। Sixth Joint National Committee ने Hypertension उच्च रक्तचाप को समझने या वर्गीकरण करने के लिए निम्नलिखित Criteria अपनाया है।

JNC VI Criteria for classification of Blood Pressure

Category

Systolic mm HG

Disatolic mm HG

Optimal

<120

<80

Normal

<130

<85

High Normal

130-139

85-89

Stage -1 Hypertension

140-159

90-99

Stage -2 Hypertension

160-179

100-109

Stage -3 Hypertension

>180

>100

पाचन तंत्र (Digestive System)

पाचन तंत्र एक ऐसा तंत्र है जो कि बहुत से अंगों से मिलकर बना होता है। इसमें निम्नलिखित अंग पोषण तंत्र बनाने में सहायक होते हैं:

  • मुख (Mouth)
  • ग्रसनी (Pharynx)
  • ग्रासनली (Oesophagus)
  • आमाशय (Stomach)
  • छोटी आँत (Small Intestine)
  • बड़ी आँत (Large Intestine)
  • मलाशय (Rectum)
  • मलद्वार (Anus)
  • यकृत (Liver)

ये सभी अंग मिलकर ऐलीमेन्ट्री केनाल (Alimentary Canal) बनाते हैं। मुख्य रूप से पाचन क्रिया मुख से शुरू होकर मलद्वार पर ख़त्म होती है। लेकिन इस पाचन क्रिया में सहायक कुछ और भी अंग हैं। यह सभी अंग पाचन तंत्र के प्रमुख अंगों में से हैं जैसे – ग्रंथियाँ, लार ग्रंथियाँ (Salivary glands) , अग्नाशय (Pancreas) , पित्ताशय (Gallbladder) आदि।

पाचन क्रिया

जब कभी भोजन का कौर (निवाला) मुँह में रखा जाता है उसी दौरान मुख की ग्रंथियाँ अपना रस छोड़ने लगती हैं और उस भोजन के निवाले के साथ मिल जाती हैं। भोजन को चबाने के बाद भोजन ग्रासनली में जाता है। फिर वहाँ से भोजन आमाशय में आता है। यहाँ पर भोजन में रासायनिक व यांत्रिक क्रिया होती है। और इसमें कई प्रकार के रस मिलते हैं। इस तरह से एक पचा हुआ भोजन बन जाता है।
अब यह भोजन छोटी आँत में जाता है। जहाँ पर अवशोषण (absorption) की क्रिया होती है। छोटी आँतों की सिकुड़ने तथा फैलने की क्रिया द्वारा यह भोजन सरकते हुए बड़ी आँत तक पहुँचता है। यहाँ पर शेष व्यर्थ बचा हुआ भोजन मल के रूप में परिवर्तित हो जाता है तथा बड़ी आँत में नीचे की ओर पहुँच जाता है। अंत में यह मलद्वार से बाहर निकाल दिया जाता है।

शरीर में आवश्यक तत्व

  • कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate)
  • प्रोटीन (Protein)
  • वसा (Fat)
  • विटामिन (Vitamins)
  • खनिज लवण (Mineral salts)
  • जल या पानी (Water)

कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate)

हमारे आहार का सबसे बड़ा अंश कार्बोज़ का है एवं शरीर में उत्पन्न होने वाली अधिकांश शक्ति का स्रोत है। स्टार्च (starch) और शर्करा (sugar) ये कार्बोज़ के दो प्रधान वर्ग हैं।

प्रोटीन (Protein)

प्रोटीन आहार का अत्यंत आवश्यक अंश है। ये प्रधानतः नाइट्रोजन तत्वयुक्त होता है तथा इससे शरीर की कोशिकाओं के प्रोटोप्लाज्म ऊतक तथा कोष्ठांगों की रचना होती है। यह सामान्यतः सोयाबीन, दाल, दूध, पनीर, मूंगफली, चने, मूंग की दाल आदि में पाया जाता है।

वसा (Fat)

वसा में भी कार्बोज़ के समान कार्बन हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन तत्व होते हैं। परंतु इनका अनुपात भिन्न होता है। मक्खन, घी, वनस्पति स्त्रोत वाली वसा का प्रायः आहार में उपयोग होता है।

खनिज लवण (Mineral salts)

खनिज लवण हमारे शरीर में होने वाली सभी जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक होता है। हम भोजन द्वारा इन खनिज-लवणों को ग्रहण करते हैं। ये सब खनिज लवण शरीर में भी विद्यमान रहते हैं। मुख्य खनिज तत्व इस प्रकार हैं – कैल्शियम, फ़ॉस्फ़ोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयोडीन।

कैल्शियम (Calcium)

यह मुख्यतः हड्डियों तथा दाँतों में पाया जाता है तथा इनके निर्माण के लिए आवश्यक होता है। कैल्शियम द्वारा हड्डियाँ मज़बूत और कठोर होती हैं। सामान्यतः इसकी आवश्यकता वयस्क में प्रतिदिन 1 ग्राम प्रतिदिन होती है। गर्भवती स्त्रियों में 1’/ ग्राम प्रतिदिन होती है। कैल्शियम दूध, दही, पनीर, बादाम और मूली, गोभी के पत्तों में, मैथी, गाजर में तथा दालों में पाया जाता है।

फ़ॉस्फोरस (Phosphorus)

यह शरीर में मुख्यतः प्रत्येक कोशिका में पाया जाता है। यह हड्डियों और दाँतों के निर्माण में सहायक होता है। यह तंत्रिका तंत्र को स्वस्थ रखता है। गर्भवती स्त्रियों एवं बच्चों को इसकी अधिक आवश्यकता होती है। फ़ॉस्फोरस मुख्य रूप से पत्तागोभी, सेब, मूली, सोयाबीन, गाजर, भुट्टा तथा आलू में पाया जाता है।

लोहा (Iron)

यह रक्त के लाल कोशिकाओं में Hb (Haemoglobin) के निर्माण में अधिक उपयोगी होता है। सामान्यतः एक व्यक्ति को प्रतिदिन 20-30 mg लोहे की आवश्यकता होती है। यह सेब, पालक, मटर, मैथी, गुड़, गाजर, खीरा, प्याज़, टमाटर, अँगूर, आलू आदि में पाया जाता है।

सोडियम (Sodium)

सामान्यतः इसे हम दैनिक भोजन में नमक के रूप में इसे ग्रहण करते हैं। यह लवण में क्लोरीन के साथ मिलकर सोडियम क्लोराइड बनाता है। सामान्यतः इसकी आवश्यकता प्रतिदिन 2 से 5 ग्राम होती है।

पोटेशियम (Potassium)

पोटेशियम की मात्रा सबसे ज्यादा (Intercellular fluid) अंतःकोशिका तरल में होती है। पोटेशियम कोशिकाओं में होने वाली रासायनिक क्रियाओं में आवश्यक होता है। यह तंत्रिका आवेगों के संचारण के लिए आवश्यक होता है।
सामान्यतः इसकी आवश्यकता एक व्यक्ति में प्रतिदिन लगभग 4 ग्राम होती है। यह विशेषकर प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों में पाया जाता है।

मैग्नीशियम (Magnesium)

यह शरीर में हड्डियों तथा दाँतों में पाया जाता है। मानव शरीर में 50% मैग्नीशियम हड्डियों में होता है। एक सामान्य मनुष्य को प्रतिदिन 200 से 300 mg. मैग्नीशियम (Magnesium) की आवश्यकता होती है।
यह फलों तथा सब्ज़ियों में अधिक मात्रा में पाया जाता है।

आयोडीन (Iodine)

हमारे शरीर में गले पर थायरॉइड नाम एक ग्रंथि होती है। जिसको सुचारु रूप से चलाने में आयोडीन काम आता है। यह थायरॉइड को हारमोन जैसे थायरॉक्सिन तथा ट्राई आयडोथाइरोमिन के निर्माण में सहायक होता है। आयोडीन प्याज़ में अधिक मात्रा में पाया जाता है (हालाँकि आयुर्वेद में प्याज़ को तामसिक माना गया है) । समुद्री पदार्थ व नमक में पाया जाता है। इसकी कमी से घेघा (Goitre) रोग होता है।

विटामिन (Vitamin)

विटामिन आवश्यक रासायनिक यौगिक होते हैं जो सूक्ष्म मात्रा में प्रायः सभी खाद्य पदार्थ में पाए जाते हैं। विटामिन दो प्रकार के होते हैं। वसा घुलनशील एवं जल घुलनशील।

विटामिन

  • वसा घुलनशील विटामिन (fat soluble) -A, D, E, K
  • जल घुलनशील विटामिन (water soluble) – B तथा C

विटामिन A

विटामिन A वनस्पतियों में तथा -Carotene के रूप में मिलता है। यह प्रो-विटामिन रेटिनोल में प्रतिवर्तित होता है। यह क्रिया प्रायः आँतों में होती है। विटामिन- A हमारी दृष्टि क्षमता को बढ़ाता है। यह विटामिन रेटिनल पिगमेंटस् को बनाने में मदद करता है जो कि कम रोशनी में देखने में काम करते हैं। यह विटामिन शरीर की संक्रामक रोगों से रक्षा करता है। यह विटामिन प्रजनन शक्ति को बनाए रखने में सहायक होता है तथा अस्थि कोशिकाओं के निर्माण को नियंत्रित करता है। यह प्रायः हरी सब्ज़ियों, गाजर, पपीता, बटर (मक्खन) तथा दूध में पाया जाता है। इसकी कमी से रतौंधी (night blindness) , शुष्काक्षिपाक (xerophthalmia) , नामक बीमारियाँ होती हैं।

विटामिन D

प्रायः इसके दो प्रकार होते हैं।
विटामिन D- D2Calcifer of Cholecalciferol D3
विटामिन D हमारे शरीर में कैल्शियम के Absorption में सहायक होता है। यह विटामिन हड्डियों के निर्माण में सहायक है। यह Kidney में Phosphorus के निर्माण में मदद करता है। हमें सबसे ज्यादा विटामिन D सूर्य ऊर्जा से मिलता है। इसकी कमी से रिकेट्स (Ricketts) बच्चों में तथा Osteomalacia बड़ों में हो जाता है।

विटामिन E

यह विटामिन त्वचा में घुलनशील होता है। इसको टोकोफेरोल के नाम से भी जानते हैं। यह मुख्यतः वनस्पति तेल, रुई के बीज, सूरजमुखी के बीज, बटर (मक्खन) में पाया जाता है। इसकी आवश्यकता 0.8mg. प्रतिदिन होती है। यह विटामिन अपने प्रति-ऑक्सीकारक (Antioxident) गुणों के कारण शरीर में अनावश्यक ऑक्सीकरण को रोकता है। यह विटामिन बंध्यता (Sterility) को रोकता है। गर्भ के विकास में अधिक सहायक होता है।

विटामिन K

इसे हम रक्तस्त्रावरोधी कारक विटामिन के नाम से जानते हैं। यह मुख्यतः हरी सब्ज़ियों तथा फलों में पाया जाता है। यह गाय के दूध में अधिक मात्रा में पाया जाता है।

जल घुलनशील विटामिन – B तथा C

विटामिन B

यह विटामिन कॉम्प्लेक्स में पाया जाता है। जैसे –

  • Vitamin – B1 Complex
  • Vitamin – B2 Riboflavin
  • Vitamin – B6 Pyridoxine
  • Vitamin – B3 Pantothenic acid
  • Vitamin – B12 Cyanocobalamin

विटामिन C- (Ascorbic acid)

इस विटामिन को हम एसकारबिक एसिड के नाम से जानते हैं। यह विटामिन जल में घुलनशील होता है तथा ऊष्मा से नष्ट हो जाता है। यह विटामिन प्रायः ताज़े फलों में विशेष रूप से पाया जाता है जिनमें Citrus acid (सिट्रस एसिड) होता । है। जैसे- संतरा, नीबू, नारंगी, आँवला, टमाटर, पपीता, अँगूर, चुकंदर आदि। यह विटामिन इंसुलिन के उत्पादन में सहायक होता है। इसकी कमी हो जाने से स्कर्वी Scurvy रोग हो जाता है।

अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine System)

हमारे शरीर की ग्रंथियाँ दो प्रकार में विभाजित हैं। एक वह जो अपने स्त्राव सीधे रक्त में प्रवाहित करती हैं और इन ग्रंथियों में स्त्राव नलियाँ नहीं होतीं। उन्हें हम अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ (Endocrine glands) कहते हैं। दूसरी वह जिसमें स्त्रावनलियाँ होती हैं। उन्हें हम बहिःस्त्रावी ग्रंथियाँ (Exocrine glands) कहते हैं।

हॉर्मोन

शरीर में कुछ ऐसी ग्रंथियाँ होती हैं। जिनका स्त्राव उत्पन्न होकर रक्त में मिल जाता है और फिर रक्त के साथ शरीर में परिसंचारित होता है। इन स्त्रावों के कार्यकारी तत्वों को हम हार्मोन के नाम से जानते हैं।

अंतःस्रावी ग्रंथियाँ

  • पीयूष ग्रंथि (Pituitary gland)
  • थायरॉइड ग्रंथि (Thyroid gland)
  • पैराथायरॉइड ग्रंथि (Parathyroid gland)
  • थाइमस ग्रंथि (Thymus gland)
  • एड्रीनल ग्रंथि (Adrenal gland)
  • अग्नाशय में लैगरहैंस की द्वीपिकाएँ। (Istets of Langerhans in the Pancreas)
  • पीनियल ग्रंथि (Pineal gland)
  • लिंग ग्रंथि (Sexual gland)

पीयूष ग्रंथि (Pitutary gland)

यह ग्रंथि मस्तिष्क के आधार पर होती है। इस ग्रंथि में अग्रज खण्ड (anterior lobe) पश्चज खण्ड (posteriorlobe) और दोनों के बीच में मध्यवर्ती भाग (pars intermedia) होते हैं। यह लालिमा लिए हुए भूरे रंग की होती है। अग्रज खण्ड (anterior lobe) से निम्न प्रकार के हॉर्मोन निकलते हैं:-

  • वृद्धि हॉर्मोन (GH) – यह हॉर्मोन शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
  • एड्रीनोकॉर्टिकोट्रापिक हॉर्मोन[AdrenocorticotropicHormone (ACTH) ] – यह हार्मोन एड्रीनल ग्रंथि के कर्टिक्स की वृद्धि विकास के लिए आवश्यक होता है।
  • थायरॉइडप्रेरक आंतरिक हॉर्मोन[Thyroid stimulatingHormone (TSH) ] – यह हार्मोन थायरॉइड ग्रंथि की वृद्धि और उसकी क्रियाशीलता को बढ़ाने के लिए काम करता है।
  • गोनाडोट्रॉफिक हॉर्मोन (Gonadotropic Hormone) – स्त्री और पुरुष दोनों में अग्रज पियुष ग्रंथि से निम्न दो जनन ग्रंथियाँ पोषण या लिंग हॉर्मोन उत्पन्न होते हैं – 1. पुटक-उद्दीपक हॉर्मोन, 2. पीतपिण्डकर हॉर्मोन।
  • पुटक उद्दीपक हॉर्मोन (Follicle FSH) – यह स्त्रियों में डिम्बग्रन्थि पुटकों (Overian Follicles) की वृद्धि के लिए काम करता है।
  • पीतपिण्डकर हॉर्मोन (Luteinizing Hormone) – यह स्त्रियों में डिम्बग्रंथि पुटक या ग्राफियत पुटक को पूर्णरूप से परिपक्व करता है।
  • स्तनप्रेरक हॉर्मोन (Prolactin Hormone) – यह हॉर्मोन एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन के साथ स्तनों का विकास करता है। तथा गर्भावस्था के दौरान दुग्ध निर्माण करने के लिए प्रेरित करता है।

पश्चज खण्ड से निकलने वाले हॉर्मोन

  • एन्टीडायूरेटिक हॉर्मोन (Antidiuretic Hormone) – यही हॉर्मोन जल के लिए वृक्कीय नलिकाओं की Permeability को बढ़ाकर उनमें जल में पुनः अवशोषण को बढ़ाता है।
  • ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन (Oxytocin Hormone) – इस हॉर्मोन का काम मुख्यतः स्त्री के स्तनों की Myoepithelial Cells को संकुचित करना होता है। जिसका कार्य दूध को बाहर निकालना होता है।

थायरॉइड हॉर्मोन (Thyroid Hormone)

यह हॉर्मोन थायरॉइड ग्रंथि से निकलता है। थायरॉइड से थायरॉक्सिन (Thyroxine T4) एवं ट्राइआयडोथारोनीन (Triodothyronine1,3) हॉर्मोन निकलते हैं। ये हॉर्मोन ऊतकों की वृद्धि एवं विकास को नियंत्रित करते हैं। इनकी कमी या अधिकता होने से कई प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं। जैसे- थायरॉइड अल्पक्रियता (Hypothyroidism) और थायरॉइड अतिक्रियता (Hyper Thyroidism)

थाइमस ग्रंथि (Thymus gland)

यह ग्रंथि वक्षीय गुहा में विराजमान रहती है। इसमें दो खण्ड होते हैं। यह मुख्य रूप से बचपन से सक्रिय होती है। थाइमस ग्रंथि का कार्य एंटीबॉडी एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में काम करती है।

एड्रीनल ग्रंथि (Adrenal gland)

ये ग्रंथि वृक्क के ऊपर स्थित होती है। इससे विभन्न प्रकार के हार्मोन निकलते हैं। जैसे- ग्लूको कार्टिकॉयड, मिनरलोकार्टिकॉयड, लिंग स्टेरॉयड आदि।

अग्नाशय में लैगरहैंस की द्वीपिकाएँ (Istets of Langerhans in the Pancreas)

यह ग्रंथि वाहिनी युक्त होती है। इसके ऊतकों से पाचक रस उत्पन्न होता है जो पाचन क्रिया में काम आता है। अग्नाशय के कोशिकाओं के इन गुच्छों को लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ कहते हैं जो अंतःस्त्रावी ग्रंथियाँ होती हैं। इन कोशिकाओं को दो भागों में विभाजित किया गया है इन कोशिकाओं (cells) द्वारा ग्लूकैगान हार्मोन उत्पन्न होता है तथा द्विकोशिकाओं (cells) से इंसुलिन उत्पन्न होता है।

पीनियल ग्रंथि (Pineal gland)

यह मस्तिष्क के नीचे तृतीय निलय (Third Ventricle) के पीछे कार्पस कैलोसम के निकट एक छोटा सा लगभग 10 से.मी. लंबा लाल या भूरे रंग का पिण्ड होता है।

लिंग ग्रंथि (Sexual gland)

पुरुष और महिलाओं के शरीर में अंगों और नलिकाओं की वह व्यवस्था है जो शुक्राणुओं और अण्डाणुओं की उत्पत्ति करती है।

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