The role of yoga in stress management In Hindi
तनाव प्रबंधन में योग की भूमिका
तनाव जीवन की प्रगति के लिए अन्य आवश्कताओं की तरह महत्वपूर्ण होता है। परंतु इसका नियंत्रण के बाहर चले जाना घातक हो सकता है। योग जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण व दर्शन से तथा चिकित्सा के माध्यम से तनाव को नियंत्रित रखता है जो कि हानिरहित तथा लाभकारी होता है, जिसे ‘स्ट्रेस’ कहते हैं। जीवन में गति व प्रगति इसी से आती है। परंतु इसी स्ट्रेस की मात्रा जब अत्यधिक हो जाए तो ‘डिस्ट्रेस’ अर्थात् हताशा कहते हैं।
जीवन में आधुनिकता व आधुनिक उपकरणों के प्रवेश ने जहाँ व्यक्ति को मानव – मूल्यों से दूर किया है वहीं अतिशय तनाव एक महामारी की तरह फैल चुका है जिसके कारण नाना प्रकार की मनोकायिक बीमारियाँ जन्म ले रही हैं। योग में जहाँ एक ओर यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि का पालन व काम, क्रोध, लोभ मोह, मत्सर, ईष्र्या, द्वेष से दूर रहना सिखाया जाता है, वहीं दूसरी ओर जीवन के उच्चतर उद्देश्यों की ओर ध्यान दिलाया जाता है। उच्चतर जीवन है, उसे जिया भी जा सकता है यह न जानने के कारण हममें से कई लोग सारा जीवन ही तनाव-भटकाव में बिता देते हैं।
तनाव के सकारात्मक उपयोग से जहाँ प्रतिस्पर्धा में अच्छे परिणाम आते हैं, अंतिम समय तक कार्य को श्रेष्ठतम रूप देने की योग्यता व ऊर्जा बनी रहती है। वहीं संघर्ष में विजय कराने और हमें लापरवाह होने से बचाने में सकारात्मक तनाव की महती भूमिका है। तनाव को महत्तम रूप में उपयोगी बनाए रखने के लिए योग सहारा बनता है।
तनाव के नकारात्मक परिणाम विभिन्न प्रकार के रोगों को जन्म देते हैं जैसेउच्च रक्तचाप, मधुमेह, क़ब्ज़, अस्वस्थ पाचन तंत्र, अल्सर, आँखों व अंगों की शक्ति कम होना, साँस फूलना, एड्रेनल ग्रंथि से अधिक स्राव का होना, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, उद्वेग, चिंता, भयभीत बने रहना, काम करने का मन न होना, हृदय रोग व हृदयाघात (हार्ट अटैक) , मानसिक अवसाद, गठिया इत्यादि।
यम के अंतर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य का आचरण समाज में स्वस्थ व सुरक्षित परिवेश तैयार करता है। व्यक्तिगत रूप से इसका पालन सभी करें जिससे सुंदर स्वस्थ व सुरक्षित वातावरण में अनेक तनाव के कारण स्वयमेव ओझल हो जाएँगे।
नियम के अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान हमें संयमित व संतुष्ट जीवन जीना सिखाते हैं। असंतुष्टि व अतृप्ति का भाव, ग़लत तार्किकता तथा नकारात्मक चिंतन – तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान से ही जाता है अन्यथा जीवन बिन उद्देश्य भटकने जैसा हो जाता है।
आसन के अंतर्गत मन शरीर के साथ जुड़कर शक्तिशाली, सहनशील, शांत व तनाव रहित बनना सिखाता है, क्षमताएँ बढ़ाता है जिसे योग की भाषा में सिद्धियाँ कहते हैं। आसनों के चिकित्सकीय लाभ सर्वाधिक मनोकायिक रोगों पर देखे गए हैं।
प्राणायाम के द्वारा मन अ-मन बनता है, भावनात्मक संतुलन बढ़ता है, मन आत्मा से जुड़ता है। आत्मिक गुणों का विकास होता है। मानव के परिपूर्ण रूप से खिलने की संभावना बढ़ती है। अंतःस्रावी प्रभावों को निष्प्रभावी कर सकने की संभावना बनती है। तब तनाव एक प्रेरक का कार्य करता है।
प्रत्याहार से इन्द्रियों को अंतर्मुखी कर उनके विषयों को अंतर में प्राप्त करने की विद्या सिखाई जाती है जिससे मन की बाहर की दौड़ कम होती है। उसका भटकाव व तनाव कम होता है।
धारणा, ध्यान, समाधि से मस्तिष्क से एल्फ़ा तरंगें निकलती हैं जो मन में शांति व सृजनशीलता लाती हैं। नींद, हास्य, खेल व एकांतवास के स्वास्थ्यकारी परिणाम देखे गए हैं परंतु ध्यान की तुलना में वे अति सीमित हैं।
योग सात्विक व संतुलित भोजन ग्रहण करने को भी प्रेरित करता है जिसके मनोविकारों पर प्रभाव को अब आधुनिक विज्ञान ने स्वीकारा है। स्वाद व उत्तेजना को तलाशने वाला मन अब भोजन से पौष्टिकता व स्वास्थ्य तलाशता है।
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