Yoga and Ayurveda In Hindi

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योग और आयुर्वेद (एक अध्ययन)

प्रारंभिक योग भारतीय समाज में व्यक्तिगत साधना एवं आध्यात्मिकता का परिचायक हुआ करता था। परंतु आज के भौतिकतावादी युग में योग बहुचर्चित एवं बहुप्रासंगिकता को प्राप्त कर अंतर्राष्ट्रीयता की ओर अग्रसर हुआ है। योग का स्थान व्यक्तिगत साधना एवं आध्यात्मिकता से आगे जाकर व्यापक समाज परक उपयोगिता एवं वैज्ञानिकता की ओर अग्रसर हो गया है।
आधुनिक योग, योग का एक पक्ष मात्र है जबकि योग का मूल आध्यात्मिकता है एवं यह तत्व ज्ञान एवं तत्वानुभूति का विज्ञान है।
आयुर्वेद तथा योग एक काल में उत्पन्न एवं एक ही समान लक्ष्यों को ध्यान में रखकर बनाई गई विद्याएँ हैं। आयुर्वेद की परिभाषा से ही विदित होता है कि आयुर्वेद सदैव सुखमय एवं हितकर जीवन जीने के उपरांत मोक्ष प्राप्ति का साधन रहा है। आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ है – आयु = जीवन, वेद = ज्ञान या विज्ञान है, जो कि जीवन जीने की कला सिखाता है।
आयुर्वेद को आरोग्य के लिए एक बहुउद्देशीय विज्ञान के रूप में विकसित किया गया है। जिसकी सहायता से जीवन के चारों लक्ष्य – धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनके प्रथम तीन तो सुखमय एवं हितमय आयु के द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं, किंतु चतुर्थ पुरुषार्थ हेतु आयुर्वेद में औषधियों के साथ-साथ योग अभ्यास का भी वर्णन किया जाता है।
आयुर्वेद शरीर, इन्द्रिय, सत्व एवं आत्म-रूप जीवन का विधान करता है वहीं योग सत्व एवं चेतना का विज्ञान है जो तत्व ज्ञान एवं तत्वानुभूति के साथ-साथ आंतरिक दुःख निवृत्ति तथा मोक्ष प्रदायक विद्या है। योग एवं आयुर्वेद दोनों ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रमशः मानस एवं चैतन्य स्वास्थ्य तथा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य से सम्बंधित है। इस वैशिष्ट्य के होने के बाद भी योग आयुर्वेद का ही एक अंग है। संभव है कि आयुर्वेदान्त मानस एवं चैतन्य चिकित्सा का ही विस्तृत स्वरूप योग के रूप में सामने आया होगा।
साथ ही साथ अनेक विद्वानों का मत है कि शरीर, मन एवं वाणी की शुद्धता के लिए किसी एक आचार्य ने ही शरीर हेतु आयुर्वेद, मन हेतु योग एवं वाणी हेतु व्याकरण शास्त्र की रचना की है, ये आचार्य और कोई नहीं अपितु वही योग के प्रवर्तक आचार्य पतंजलि हैं। चरक संहिता के प्रथम श्लोक की व्याख्या करते वक्त टीकाकार उक्ति देते हैं –
पतञ्जलमहाभाष्यचरक प्रति संस्कृतेः।
मनोवाक्कायदोषाणं हर्सेऽहियतये नमः॥

आयुर्वेद के आदि ग्रंथ चरक संहिता में योग विद्या के समस्त सिद्धांत सारांश रूप में पहले ही उपलब्ध हैं। चरक संहिता के नैष्ठिकी चिकित्सा के अंतर्गत तत्व ज्ञान एवं तत्वानुभूति मूल में योग विद्या एवं सत्व बुद्धि का वर्णन प्राप्त होता है। इसी सारांश रूप योग विद्या का वर्णन पतञ्जल कृत योग सूत्र में विस्तार पूर्वक प्राप्त होता है।
श्री अत्रिदेव विद्यालंकार के अनुसार यायावर प्रजाति के कृष्ण यजुर्वेद की चरक शाखा के लोग आयुर्वेद एवं योग में प्रवीण होते थे। ये सदैव भ्रमणशील प्रकृति के हुआ करते थे, इसलिए इन्हें चरक कहा जाता है।
आयुर्वेद एवं योग के मूल सिद्धांत एवं शरीर शोधक सिद्धांत आपस में अनन्य समानता रखते हैं। आयुर्वेद की प्रमुख शरीर शोधक क्रिया पञ्चकर्म है जिसके अंतर्गत आचार्य चरक ने वमन, विरेचन, अनुवासन, अस्थापन एवं शिरोविरेचन को सम्मिलित किया है एवं योग सूत्र में महर्षि पतंजलि ने षट्कर्मों का वर्णन शरीर शोधन के रूप में किया है, जो क्रमशः धौति वस्ति नेति नौली त्राटक कपालभाती। इनमें एवं आयुर्वेदोक्त पञ्चकर्मों में अत्यधिक समानता है। यह षट्कर्म आयुर्वेद में भी पूर्ण किंतु सूक्ष्म रूप में विद्यमान है। इनका आयुर्वेद में विकास हुआ और बाद में इन्हें हठयोग में सम्मिलित कर लिया गया।
योग का मूल उद्देश्य मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति कराना रहा है जो जीवन के विज्ञान अर्थात् आयुर्वेद का एक अंश या पक्ष मात्र है। आयुर्वेद सम्पूर्ण जीवन का मार्गदर्शक शास्त्र है एवं मोक्ष प्राप्ति आयुर्वेद का अंतिम लक्ष्य है जो आध्यात्मिक विकास से सम्बंधित है। आध्यात्मिक विकास के अतिरिक्त आयुर्वेद शारीरिक एवं मानसिक विकास का भी उपदेश प्रदान करता है।
आयुर्वेद क्रमशः मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक कष्टों के निवारण का विज्ञान है जिसे आयुर्वेद सम्पूर्ण आरोग्य मानता है यही आरोग्य मनुष्य को पुरुषार्थ चतुष्ट्य (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) की प्राप्ति का साधन कराता है। जबकि, योग आध्यात्मिक कष्टों का निवारण कर मोक्ष का साधन मात्र है।
जैसा कि पूर्व में कहा गया है कि मन, वाणी एवं शरीर शुद्धि हेतु एक ही आचार्य ने तीन विभिन्न ग्रंथों की रचना की है। चित्तशुद्धि हेतु पतञ्जल योगसूत्र, वाणी शोधन हेतु पतंजलकृत महाभाष्य एवं शरीर शोधन हेतु चरक संहिता (पतंजलि कृत) । इसी आधार पर आयुर्वेद के आठ अंगों एवं योग सूत्र में वर्णित आठ अंगों में अत्यंत समानता परिलक्षित होती है।
योगसूत्र में वर्णित प्रथम अंग यम है, जिसके अंतर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह वर्णित है। इनका आयुर्वेद में क्रमशः स्वास्थ्य वृत्त, आचार, रसायन, पापकर्म, त्रि-उपस्तम्भ एवं हितआयु आदि में विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। योगसूत्र के द्वितीय अंग नियम के अंतर्गत शौच, संतोष, तप तथा स्वाध्याय एवं ईश्वर प्रणिधान वर्णन है। इन्हें भी आयुर्वेद में अतिव्यवस्थित एवं सुगम्य तरीके से वर्णित किया गया है जो स्वास्थ्य-वृत्त एवं दिनचर्या आदि के प्रमुख अंग के रूप में स्थापित है। इसी प्रकार आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि इन छह अंगों का भी आयुर्वेद में विस्तार-पूर्ण, स्वच्छ, एवं प्रखर वर्णन प्राप्त होता है। इनमें भी धारणा, ध्यान, समाधि को आचार्यों ने मानसिक रोगों की प्रमुख चिकित्सा के रूप में वर्णित किया है। आयुर्वेद में वर्णित प्रज्ञा एवं योग पुरुष के लक्षण योग सूत्र में वर्णित ऋतम्भरा, प्रज्ञा एवं भगवतगीता के योगस्थ पुरुष के समान ही हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि योग आयुर्वेद का एक अंग मात्र है। आयुर्वेद के सिद्धांतों पर गौर करने से पता चलता है कि आयर्वेद इहलौकिक एवं परालौकिक सुखों की कामना को ध्यान में रखकर सृजित किया गया है। आयुर्वेद धर्म-अर्थकाम-मोक्ष पुरुषार्थ चतुष्ट्य एवं धन-एष्णा, प्राण-एष्णा एवं परलोक-एष्णा आदि त्रि-एष्णाओं की सफलता की प्राप्ति हेतु पथ-प्रदर्शक है। यह औषधि, आहार एवं विहार द्वारा इहलौकिक सुख की प्राप्ति का साधन है, तो आध्यात्म तत्वज्ञान एवं तत्वानुभूति द्वारा परालौकिक सुख प्राप्ति का साधन योग आयुर्वेद का एक पक्ष होने के साथ दोनों आपस में एक-दूसरे के पूरक भी हैं। जहाँ आयुर्वेदोक्त विभिन्न शुद्धि कारक उपायों के द्वारा शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शुद्धि के उपरांत मोक्ष प्राप्ति हो जाती है वहीं योग की विभिन्न क्रियाओं द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शोधनोपरांत मोक्ष प्राप्ति होती है। यद्यपि योग केवल मोक्ष प्राप्ति का साधन है, किंतु जब तक व्यक्ति स्वस्थ एवं सहज नहीं होगा तब तक मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकता। इसलिए आयुर्वेद को सुखमय जीवन उपरांत मोक्ष प्रदान करने वाला शास्त्र होने से प्रधानता दी जाती है एवं योग को सहायक या अंग कहा जाता है।

सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए कुछ टिप्स

  • प्रातःकाल सूर्योदय से पहले बिस्तर का त्याग कर दें।
  • तांबे के बर्तन में रात को पानी रखें व सुबह कम से कम दो गिलास या अधिक पीएँ।
  • एक चम्मच त्रिफला का प्रयोग करें।
  • नाश्ते में शुद्ध आहार लें (डिब्बा, पैकेट या शीशियों में बंद आहार का यथासंभव त्याग करें) ।
  • नशीले पदार्थों का सेवन त्याग दें।
  • आहार में शाकाहारी भोजन, सलाद, फल, जूस इत्यादि लें।
  • दोपहर के पहले आहार लेने की कोशिश करें तथा रात्रि विश्राम के 4 घंटे पहले भोजन करें तथा रात्रि को जल्दी सोएँ।
  • सात्विक और शुद्ध भोज्य पदार्थ आपके ओज और तेज का तो निर्माण करता ही है साथ ही प्रसन्नता और प्रेम की भावनाओं को भी उत्पन्न करता है।
  • खाँसी, छींक, जम्हाई, उल्टी, पेशाब एवं शौच को कदापि न रोकें। इन्हें रोकने से कई तरह की बीमारियाँ जन्म लेती हैं।
  • जानवरों की तरह दिनभर जुगाली करना छोड़ दें। बबलगम, च्युइंगम, गुटखा, तम्बाकू, पान-बीड़ी, सिगरेट जब इनको चबाते हैं या पीते है तो ये भी आपके बहुमूल्य जीवन को चबाते हैं और पीते हैं। तो क्या आप चाहते हैं कि कोई आपके जीवन को मुफ्त में चबाए और पी जाए? अतः इनका सेवन कदापि न करें।
  • रात को सोने से पूर्व हाथ, पैर एवं चेहरे को साफ़ पानी से ज़रूर धोना चाहिए। ऐसा करने से नींद अच्छी आती है और स्वास्थ्य लाभ भी होता है।
  • पेट की बीमारियाँ एवं क़ब्ज़, अजीर्ण, वात, पित्त, कफ़ ये सब उपवास से नियंत्रित होते हैं।
  • जीवन जीने के लिए खाना खाएँ, खाने के लिए न जिएँ।
  • आहार शुद्ध होने से अंतःकरण की शुद्धि होती है। अंतःकरण की शुद्धि से निश्चल स्मृति मिलती है, स्मृति की प्राप्ति होने पर सम्पूर्ण ग्रंथियाँ खुल जाती हैं।
  • वात, पित्त, कफ़; ये तीनों ही शरीर को रोगी और निरोगी बनाते हैं। इनको ध्यान में रखकर अपना खान-पान, व्यवहार, व्यायाम, दिनचर्या तथा बाक़ी की अन्य बातें निर्धारित करें। जिससे आप वात, पित्त, कफ़ के प्रकोप से बच सकें।
  • अपने आत्मबल से वात, पित्त, कफ़ को संतुलित करें। वात रोग शांत करने के लिए चिंता का त्याग करें। पित्त रोग को शांत करने के लिए अपनी क्षमताएँ बढ़ाएँ और कफ़ रोग को शांत करने के लिए अपने स्वभाव में स्थिरता लाएँ।
  • रात को दो बादाम पानी में डाल दें एवं सुबह दूध के साथ छिलका उतारकर व घिसकर खाएँ। यह आपकी स्मरणशक्ति में वृद्धि करता है तथा दिमाग तेज़ करता है।
  • सूक्ष्म व्यायाम व हल्के आसन के साथ सूर्य नमस्कार करें।
  • अच्छे स्वास्थ्य के लिए नियमानुसार योगाभ्यास करें।
  • ध्यान व प्रभुदर्शन करें।
  • योगासन सम्बंधी क्रियाएँ मात्र हमें अच्छा स्वास्थ्य ही प्रदान नहीं करतीं बल्कि वे हमें मानसिक स्वस्थता भी प्रदान करती हैं।
  • ब्रह्मचर्य अपनाएँ, जीवन मज़बूत बनाएँ।
  • मात्र योग ही आज एक ऐसा विकल्प है जिससे मेरुदण्ड में लचीलापन पैदा किया जा सकता है। यह शरीर, मन तथा मस्तिष्क को अच्छा स्वास्थ्य व सुख-शांति प्रदान करता है। कहा भी गया है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।’
  • जिसने योगाभ्यास की अग्नि से अपने शरीर को तपा लिया हो उसे फिर न कोई रोग सताता है न ही बुढ़ापा। मृत्यु भी उसके पास जाने से डरती है – उपनिषद्।।
  • सकारात्मक सोच रखें।
  • बड़ी सोच का बड़ा जादू होता ही है, क्रियान्वित करें।
  • अच्छे साहित्य पढ़ें – ऊर्जावान बनें।
  • विनम्रता रखें, शक्तिशाली हो जाएँ।
  • दिनभर व्यस्त रहते हुए भी अपनी देह के प्रति सजग रहें।
  • परिवार के अन्य लोगों से अपेक्षा न करते हुए उन्हें स्नेह दें।
  • दस बातों का चिंतन करें और उनका पालन करने की कोशिश करें। – क्षमा, मार्दन, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचनत्व और ब्रह्मचर्य।।
  • चार चीजें छोड़ दें – क्रोध, मान, माया, लोभ।
  • पाँच बातें ध्यान रखें, हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह – जो अपनाने योग्य नहीं हैं।
  • आप दूसरों की नज़रों में कितना उठे हो, इस पर गौर मत करो। खुद की नज़रों में कितना उठे हो, इस पर गौर करो।
  • दूसरों की राह में फूल बिछाना चालू कर दो। आपके रास्ते के काँटे भी फूल बन जाएँगे।
  • आपको भाषाएँ कितनी आती हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है। आप कितने संस्कारवान हैं, यह महत्वपूर्ण है।
  • सिर में शुद्ध तेल की मालिश ज़रूर करें। बाज़ार के खुशबू वाले तेल से बचें। नारियल का तेल, सरसों का तेल या बादाम का तेल लगाएँ, ये मस्तिष्क को ताजगी देते हैं।
  • प्रतिदिन अच्छा साहित्य पढ़ने की आदत डालें। ज्ञान कभी निरर्थक नहीं जाता।
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयुष्य रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है। – संत ज्ञानेश्वर
  • ध्यान रखें मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।
  • जिसके अंदर आत्मबल है उसकी मदद देवता भी करते हैं।
  • ध्यान रहे जैसे हमारे टेलीविज़न के अंदर का कोई भी पुर्जा ज़रा सा भी ख़राब हो जाता है तो तस्वीर सही नहीं आती, धुंधली आती है। रेखाएँ आती हैं या ख़राब दिखाई देता है। वैसे ही आपके शरीर का कोई अंग यदि प्रकोपित है तो आपकी जिंदगी भी ख़राब टेलीविज़न की भाँति हो जाती है। स्वास्थ्य की तरफ़ ध्यान दें आपकी तस्वीर सदा अच्छी दिखेगी।
  • हमारा शरीर कई पुद्गल परमाणुओं का पुंज है। अनंत अणु तथा परमाणुओं से मिलकर बना है। वे सभी इसी ब्रह्माण्ड के असंख्य रहस्य छिपाए हुए हैं। अपने आपको जानने की चेष्टा करें। न जाने कौन सा रहस्य, कौन सी शक्ति प्रदान कर जाए।
  • जैसे हम मकान बनाते समय यदि नक़ली माल लगा देंगे तो वह जल्दी गिर जाएगा और टूटकर बिखर जाएगा। उसी प्रकार आप जो भोजन करते हैं, उसी से आपका निर्माण होता है। अब आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप अपने देह-रूपी मकान को कैसे बनाते हैं।

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